Friday, 21 June 2019

गो महिमा

ये कौन हैं जानते हो ?

ये वो  जगज्जननी भगवतियॉ  हैं , जिनके पीछे -पीछे  स्वयं पराम्बा भगवती  लक्ष्मी अपने आठ प्रकार के ऐश्वर्यों को  लिये  सेवा की कामना  से  जाती हैं  ! 

जिनके पीछे स्वयं    परात्पर  परब्रह्म  भी नन्हा सा  बालक बनकर चलता है कि मॉ की कुछ दया  मुझ पर भी हो जाये  !

जिनकी पदचाप से उड़ने वाली धूल के हर कण-कण में करोड़ों करोड़ो देवता अपने  बसने का  ठिकाना खोजते हैं !

ये वो  शक्तियॉ हैं जो अपनी हरेक  पदचाप में धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष  की छाप छोड़ती जाती हैं !

ये वो राजरानियॉ हैं , जो  हरेक सन्त के,  हरेक महात्मा के,  हरेक पंडित के , हरेक विद्वान् के,  हरेक बुद्धिजीवी के,  हरेक योगी के , हरेक भक्त के  हृदय रनिवास पर  राज करती हैं !

............हॉ , ये  माऐं  है ,  ये गायें हैं  ! ✒️

गायें क्यों कहते हैं इन्हें  ,

........क्योंकि  स्वयं वेदों ने इन्हें ही गाया  है ,   स्वयं परमात्मा ने इन्हें ही गाया है , समस्त  ऋषियों ने इन्हें  ही गाया है ।   जो  हरेक  धर्मज्ञ, हरेक मनीषि  द्वारा गायी  जाये , वही ये  गायें हैं ।  ✒️

गाय तो गायन है , गोपाल, गोविन्द स्वरूप भगवान् मुरली मनोहर श्याम सुन्दर श्री कृष्ण  की  बंसी की हरेक स्वर- सरस्वती जगज्जननी भगवती स्वरूपा गायों  की महिमा ही गाती  हैं ।

गच्छतीति गौ - जो चलती जाती हैं , सदैव अनवरत । वर्तमान के समीपस्थ भूत और भविष्यत् की भी वर्तमान  संज्ञा होती है । गौ माता प्रवाहमाना हैं ,  जो अनवरत गतिमान हैं , वे गौं हैं अर्थात्  चेतना और यथार्थता की संगम यही हैं ।

 
इस संसार में जिसके पास भी आज सुख है  , शान्ति है,   धन सम्पदा , वैभव  और ऐश्वर्य है ,  ज्ञान है , गुण है , वे सब  का सब किसी न किसी जन्म की   किसी न किसी प्रकार की गो-सेवा का ही फल है ।

जो समस्त प्राणियों की माता हैं , जो समस्त सुखों को देने वाली हैं , वे यही गायें हैं ।

#मातरस्सर्वभूतानां_गावः_सर्वसुखप्रदाः।।

मॉ ! तेरे चरणों की  कुछ  धूल भी मिल जाये  !
हो जाऊं मैं धन्य तभी  जीवन ये संवर जाये  ।।

।। जय श्री  राम ।।

Wednesday, 19 June 2019

सचल शव और सचल शिव

सचल शव और सचल शिव ----

जिन धन्यात्माओं को महान् देवताओं के दर्शन /अनुभव  हैं, उन्हीं को देवताओं की चिन्ता और भय  भी होता है कि  मेरी परम्परा क्या है , मेरा  कुल गोत्र. मर्यादा क्या है,  मैं अमुक कर्म्म करूंगा तो अमुक अमुक देवता रुष्ट  होंगे या प्रसन्न होंगे । 

वही लोग ये चिन्ता करते हैं कि अमुक शास्त्रविधि का मुझे पालन करना है या अमुक निषेध से बचना है ।

वही लोग  ये प्रार्थना करते हैं कि अमुक अमुक  देवता मुझसे प्रसन्न हों ।  

ऐसे जो लोग शास्त्रीय विधि निषेधों की चिन्ता करते हैं ,  उनके अधीन स्वयं को  करने में धन्य अनुभव करते हैं, परम्परागत    मर्यादाओं  से आकर्षित होते हैं,  वे सचल शिव हैं ।

सोया हुआ , अचेत पड़ा हुआ प्राणी जाग्रत प्राणियों और उनके संसार  से भयभीत नहीं होता ।  उसे भय , चिन्ता होती भी है तो मात्र अपने ही स्वप्न जगत् से ।।

जागे हुए में ही  जाग्रत प्राणियों और  उनके जगत् से भय चिन्ता देखी जाती है ।

आजकल लोग शास्त्रों का तिरस्कार करते हैं तो  उसके पीछे प्रधान कारण ये है कि    वे अचेत  हैं । हम तो  ऐसे प्राणियों को   सचल शव  कहते हैं  ।

आजकल चारों ओर सचल शव बहुत  ही अधिक हैं, और  सचल शिव बहुत ही कम हैं ।

।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।

Tuesday, 18 June 2019

समुद्रयात्रा समर्थक, कृण्वन्तो विश्वमार्य्यम् वालों का खण्डन

समुद्रपार विदेशयात्रा समर्थकों  की नाक में नकेल ---

#कृण्वन्तो_विश्वमार्य्यम् - इस मन्त्रांश को लेकर  प्रायः   समुद्रपार  विदेशयात्रा के समर्थक    यह तर्क देते देखे जाते हैं कि   यह वेदमन्त्र   कहता है कि सारे विश्व को आर्य बनाओ ,  अतः    जब सारे विश्व को आर्य बनाना ही है  तो उसके लिये   विदेशयात्रा अपेक्षित है ।

#खण्डन ---  कृण्वन्तो विश्वमार्य्यम् - इस मन्त्रांश का यह अर्थ कथमपि नहीं कि  सारे म्लेच्छ , दस्युओं से   भरे हुए विश्व को आर्य बना लिया जाये, क्योंकि ऋग्वेद के इस मन्त्र में इन्द्र ने दस्युओं  के लिये आर्य नाम प्रदान नहीं किया है ।

व्याकरणशास्त्रीय दृष्टि से वैश्य एवं स्वामी को आर्य  नहीं कहा जा सकता , उसे तो अर्य ही कहा जा सकता है  :  #अर्यः_स्वामिवैश्ययोः (पा०अष्टा० ३।१।१०३)

उक्त मन्त्रांश  अभिप्रिय तो यही है कि  हे ऋत्विजों ! आप लोग सोम आदि सभी द्रव्य को आर्य अर्थात् भद्र/ श्रेष्ठ बनाते हुए कार्य करें ।

कदाचित्  दुर्जनतोष न्याय से  समस्त विश्व को  श्रेष्ठ बनाने की कामना भी  स्वीकार ही ली जाये  , तो भी #एतद्देशप्रसूतस्य० इत्यादि शास्त्रवचनों  के अनुसार  पृथ्वी के समस्त मानवों  को  ब्रह्मावर्त भारतभूमि के   अग्रजन्मा  महान् ब्राह्मणों की शरणागतिपूर्वक ही  उत्तम चरित्र की शिक्षा  को  लाभ करके  स्वयं  को  श्रेयमार्गस्थ करना   शास्त्रीय विधा है,  ना कि  समुद्रोल्लंघन करके विदेशयात्रा कर   स्वयं जाति-धर्मभ्रष्ट   होकर   समस्त विश्व के सम्मुख अपना मुंह काला   किया जाना संगत   है ।

।। श्री राम जय राम जय जय राम।।

Tuesday, 11 June 2019

आजकल देव असुर प्रकट क्यों नहीं होते ?

आजकल   देवता और असुर क्यों नहीं प्रकट होते ?

सुनिये !   मानव समाज में तमोगुण  और तज्जन्य मालिन्य , अपवित्रता  और  अशुचिता बढ़ जाने से परिवार , ग्राम , नगर, जनपद, प्रदेश और देश में    सर्वत्र  आसुर साम्राज्य है ।

  असुरों से घृणा करने वाले  पवित्र  देवता  उनके सम्मुख    प्रकट होना तो दूर की बात, देखना तक  नहीं चाहते   और  जहॉ  देवता ही  नहीं रहते , वहॉ असुरों को  भी  सम्मुख आने की  आवश्यकता ही नहीं  रहती  ।

जो मानव शास्त्रीय आहार - विहार  नियमों का पालन करते हैं, शुद्ध  कुलीन है,  नित्य - नैमित्तिक कर्मों का विधिवत् सम्पादक है , मनसा -वाचा-कर्मणा जिनके व्यवहार में एकता है ,   व्यवहार एवं मर्यादाओं को जानने वाले और   छल, कपट,  ढोंग,  पाखण्ड  , परद्रोह , असूया आदि से परे हैं ,  बुद्धि रूप गुहा में संस्थित  धर्म के मर्म के पारगामी हैं,

  ऐसे    दुर्लभ मनुष्य आज भी  अगोचर  दैवीय शक्तियों  के दर्शन, भाषण,    परिपूर्ण   सम्पर्क  एवं सन्निधि  से  कदापि दूर नहीं होते  है ।

आद्यशंकराचार्य 

।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।

देसी गौ का महत्व

1.  भविष्य पुराण में लिखा गया है कि गोमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं का और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगा, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र का वास  हैं।

2. सृष्टि के निर्माण में, जो 32 मूल तत्व, घटक के रूप में है, वे सारे के सारे गाय के शरीर में विध्यमान है| अतः गाय की परिक्रमा करना अर्थात पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करना है| गाय जो श्वास छोड़ती है, वह वायु एंटी-वाइरस है| गाय द्वारा छोड़ी गयी श्वास से सभी अदृश्य एवं हानिकारक बैक्टेरिया मर जाते है| गाय के शरीर से सतत एक दैवीय ऊर्जा निकलती रहती है जो मनुष्य शरीर के लिए बहुत लाभकारी है| गाय के शरीर से पवित्र गुग्गल जैसी सुगंध आती है जो वातावरण को शुद्ध और पवित्र करती है |

3. अमेरिका में कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित हुई पुस्तक “The cow is a wonderful laboratory” के अनुसार पृथ्वी पर समस्त जीव-जंतुओं और सभी दुग्धधारी जीवों में केवल गाय ही ऐसी प्राणी है, जिसे ईश्वर ने 180 फुट (2160 इंच) लम्बी आंत दी है, जो अन्य किसी भी पशुओ में नहीं है |

4. गाय आधिदैविक, अधिदैहिक एवं आधिभौतिक तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचना-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय को शास्त्रों में “सर्वसुखप्रदा” कहा गया है।

5. गाय की सींगो का आकर सामान्यतः पिरामिड जैसा होता है, जो कि शक्तिशाली एंटीना की तरह आकाशीय उर्जा (कोस्मिक एनर्जी) को संग्रह करने का कार्य करते है | गाय के कूबड/ककुद्द में सूर्य- केतु नाड़ी होती है, जो सूर्य के गुणों को धारण करती है। सभी नक्षत्रों की यह रिसीवर है। यही कारण है कि गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, घी में औषधीय गुण होते हैं।  गाय के कूबड़ में पायी जाने वाली नाड़ी, सूर्य के निकलने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकती है।

6. गाय के दूध/ घी में पीलापन रंग का राज है कि, उसमें सोने की भी आंशिक मात्रा पायी जाती है। करीब 1600 किलोलीटर दूध में 10 ग्राम सोना पाया जाता है। जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढती है |

7.  शोधकर्ताओं ने गाय के दूध में मौजूद “लैक्टोफेरिसिन B25” (लेफसिन B25) की खोज की है जो “गैस्ट्रिक कैंसर” की कोशिकाओं को रोकने में मदद करती हैं।

8.  गाय के दूध के अन्दर जल 87 %, वसा 4 %, प्रोटीन 4%, शर्करा 5 %, तथा अन्य तत्व 1 से 2 % प्रतिशत पाया जाता है | गाय के दूध में 8 प्रकार के प्रोटीन 11 प्रकार के विटामिन, पाया जाता है | गाय के दूध में ‘कैरोटिन‘ नामक प्रदार्थ भैस या जर्सी गाय के दूध की तुलना में दस गुना अधिक होता है |

9.  भैस या जर्सी गाय का दूध गर्म करने पर, उसके पोषक तत्व ज्यादातर ख़त्म हो जाते है परन्तु गाय के दूध के पोषक तत्व, गर्म करने पर भी सुरक्षित रहता है |

10. गाय के मूत्र में आयुर्वेद का खजाना है, इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता है, जो कीटाणु नासक है | गौमूत्र चाहे जितने दिनों तक रखे, ख़राब नहीं होता है और इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है | गौमूत्र में नाइट्रोजन ,फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटेशियम, सोडियम, लैक्टोज, सल्फर, अमोनिया, लवण रहित विटामिन ए वी सी डी ई, इन्जैम आदि तत्व पाए जाते है | गौमूत्र में मुख्यतः 16 खनिज तत्व पाये जाते है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है | आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का नियमित सेवन, कई बीमारियों को खत्म कर सकता है। नियमित रूप से 20 मिली गौमूत्र प्रात: सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है। 1. भूख की कमी, 2. अजीर्ण, 3. हर्निया, 4. मिर्गी, 5. चक्कर आना, 6. बवासीर, 7. प्रमेह, 8. मधुमेह, 9. कब्ज, 10. उदररोग, 11. गैस, 12. लू लगना, 13. पीलिया, 14. खुजली, 15. मुखरोग, 16.ब्लडप्रेशर, 17. कुष्ठ रोग, 18. जांडिस, 19. भगन्दर, 20. दन्तरोग, 21. नेत्र रोग, 22. धातु क्षीणता, 23. जुकाम, 24. बुखार, 25. त्वचा रोग, 26. घाव, 27. सिरदर्द, 28. दमा, 29. स्त्रीरोग, 30. स्तनरोग, 31. छिहीरिया, 32. अनिद्रा। जो लोग नियमित रूप से गौमूत्र का सेवन करते हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।

11. गौमूत्र से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ भी बनाई जाती है –

गौमूत्र अर्क (सादा) 2. औषधियुक्त गौमूत्र अर्क (विभिन्न रोगों के हिसाब से) 3. गौमूत्र घनबटी 4. गौमूत्रासव 5. नारी संजीवनी 6. बालपाल रस 7. पमेहारी आदि।

12.  देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से ‘’प्रोपिलीन ऑक्साइड” उत्पन्न होती है, जो बारिस लाने में सहायक होती है | इसी के मिश्रण से ‘इथिलीन ऑक्साइड‘ गैस भी  निकलती है, जो “ऑपरेशन थियटर” में काम आता है |

13.  पिछली सदी के अंत मे ब्राज़ील ने भारतीय पशुधन का आयात किया था । ब्राज़ील गई गायों मे गुजरात की “गिर” और “कंकरेज” नस्ल तथा आन्ध्रप्रदेश की “ओंगल” नस्ल की गाय शामिल थी । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज पुरे विश्व में भारतीय नस्ल की गाय का ब्राजील सबसे बडा निर्यातक देश है , जबकि भारत में देशी गाय की दुर्दशा किसी से छिपी हुई नहीं है | इतना ही नहीं, बल्कि ब्राज़ील में हुए एक प्रतिस्पर्धा में भारतीय नस्ल की एक गाय ने सबसे अधिक दूध देकर ये साबित कर दिया कि जर्सी गाय की वकालत करने वालों के तर्क में खोखलापन है |

14.  दूध को दो श्रेणियों मे बांटा गया है- A1 और A2 { A1 जर्सी का और A2 भारतीय देशी गाय का }

भारत सहित पुरे विश्व में  A1 दूध पीकर लोग कैंसर, मधुमेह, गठिया ,अस्थमा, मानसिक विकार  जैसे दर्जनों  रोगों का शिकार हो गए है| दुनिया भर में डेयरी उद्योग अपने पशुओं की प्रजनन नीतियों में ” अच्छा दूध अर्थात् BCM7 मुक्त A2 दूध “ के उत्पादन के आधार पर बदलाव ला रही हैं| विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित A2 दूध के दाम साधारण A1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं|  जबकि A2 दूध सिर्फ भारतीय नस्ल की देशी गाय से प्राप्त होता है |

15.  भारतीय देशी गाय में वात्सल्य भावना कूट—कूटकर भरी होती है। वह अपने बच्चे को जन्म देने के बाद 18 घंटे तक चाटती—दुलारती रहती है। यही कारण है कि सैंकड़ों बछड़ों के बीच भी अपने बच्चे को पहचान लेती है। और तो और, गाय जबतक अपने बच्चे को दूध नहीं पिलाती है, तबतक दूध नहीं देती है। जबकि भैंस या जर्सी गाय चारा खाते ही दूध दूहने की अनुमति दे देती है। यही कारण है कि गाय का दूध पीने वाले बच्चे में काफी शांत और सौम्य आचरण एवं व्यवहार ज्यादा देखे गए हैं।

Monday, 10 June 2019

स्त्रियों का व्यासासन पर बैठने का निषेध

स्त्रियों   का  व्यासासन में अनधिकार ----

जब महर्षि वेदव्यास की कोई स्त्री शिष्या ही न थी तो  ये व्यास पीठ पर कथा करने वालीं  कथावाचिकाओं की परम्परा कहॉ से आई?  महर्षि वेदव्यास की ऐसी साक्षात्  स्त्री शिष्या का नाम बताऐं, जिसने  भागवत अथवा अन्य किसी  पौराणिक  कथा का अनुष्ठान किया हो ?

गार्गी,मैत्रेयी  आदि  कोई  भी  स्त्री  इस तरह कथाऐं  नहीं बांचतीं थीं ,   वरन् सभी  प्राचीन विदुषी  स्त्रियॉ  या तो   धर्म के सन्दर्भ में  हमारे महान्   ऋषियों  से जिज्ञासा  करतीं थी  या फिर मर्यादापूर्वक अपना  मन्तव्य प्रकट करतीं थीं ।

  इसलिये    सनातन धर्म की  धज्जियॉ उड़ाने वालीं   कथावाचिकाओं को  प्राचीन महान् सनातनी विदुषियों का  पवित्र  नाम लेने का  बिल्कुल भी  नैतिक अधिकार नहीं है ।

इन  अनधिकृत   अराजक  कथावाचिकाओं के कारण   सनातन हिन्दू धर्म जगत्  धर्म से भ्रष्ट  हो रहा है और इनकी कथाओं में  जा जा कर इनका उत्साह वर्धन करने वाले  धर्माचार्य धर्म पर बोझ हैं ।

।। श्री राम जय राम जय जय राम  ।।

Wednesday, 5 June 2019

भारत में ही देवों का अवतरण क्यों हुआ

आक्षेप – सभी देवी देवताओ ने भारत मे हि जन्म क्यो लिया?
क्यो किसी भी देवी -देवता को भारत के बाहर कोइ नही जानता ?

धज्जियां – वर्तमान् लोक में ही देखा जाता है , यदि को सरकारी उच्चाधिकारी (मन्त्री आदि ) किसी नगर में पर्यवीक्षण आदि के लिए आता है तो वहां स्थित अथवा उसके समीपस्थ निर्मित सीधे प्रामाणिक सरकारी आवास पर ठहरता है , वहां से श्रेष्ठ वाहन में बैठकर तब दौरा या अन्य कार्य करता । होता तो पूरे राष्ट्र का मन्त्री है फिर भी पूर्वनियत व्यवस्था का ही अनुपालन करता है । राजा पूरे राज्य का राजा होता है पर मिलने के लिये कोई कामना करे तो , उसे मिलता राजधानी में ही है । इसी प्रकार ईश्वरीय अथवा दैवीय शक्तियां हैं , वे जब इस वैश्विक धरातल पर अवतरित होती हैं तो , इस सीधे इस विश्व पटल की प्रामाणिक आध्यात्मिक पृष्ठभूमि (भारत ) में आविर्भूत होती हैं तथा यहाँ पदार्पण करने के उपरान्त अपने आध्यात्मिक वर्चस्व से समस्त विश्व को प्रभावित करती हैं | समस्त विश्व में भारत अध्यात्म का सबसे आदर्श धरा भाग है | अफसरीपना पाकर बड़े – बड़े अफसरी भवनों में कौन नहीं आयेगा ? सांसद बनकर भी संसद में कौन नहीं बैठना चाहेगा ? और नहीं बैठेगा संसद में तो फिर कैसा सांसद ? अध्यापक होकर अपनी कक्षा में उपस्थिति न करे तो कैसा अध्यापक ? नरेन्द्र मोदी जब संसद में अपना पहला कदम रखते हैं तो इसकी धूल अपने माथे से लगाकर इसे चूमते हैं , क्योंकि उनको ज्ञात है उसका क्या महत्त्व है ; ऐसे ही भारत भूमि है, ये समस्त विश्व की धर्मसंसद है , देवता इसका महत्त्व जानते हैं , इसके प्रति तो प्रत्येक देवता यही गीत गाता है –

हम देवताओं में भी वे लोग धन्य हैं जो स्वर्ग और मोक्ष के लिए साधनभूत भारतभूमि में उत्पन्न हुए हैं-

‘#गायन्तिदेवाःकिलगीतकानिधन्यास्तुयेभारतभूमिभागे | #स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूतेभवन्तिभूयःपुरुषाःसुरत्वात् ||

देव होकर ही देवताओं की संगति की जाती है #देवोभूत्वायजेत्_देवान् , (यज् देवपूजा-दान-संगतिकरणे ) भारत से बाहर कितने देवत्व धारण करने वाले मनुष्य हैं , ये सुस्पष्ट ही है | संगति का लाभ देवत्व से प्राप्त होता है , जब संगति का ही सम्यक् लाभ नहीं मिला तो उनका विवेक कहाँ से मिलेगा ? ये सब बिना परमात्मा की कृपा कर भला कहाँ सुलभ हो पाता है –

#बिनुसतसंगबिबेकनहोई | #रामकृपाबिनुसुलभनसोई

।। जय श्री राम ।।

कहां न जाऐं

आस्तिक  धर्मजिज्ञासु  ध्यान दीजिये -----

जैसे  मानव जीवन   आकाशीय ग्रह- पिण्डों से प्रभावित होता है वैसे ही  भूमि का  प्रभाव भी उसके जीवन में आये बिना नहीं रहता है ।

कुलीन हिन्दू कहॉ जायें कहॉ नहीं -

कांची , कठियावाड़, दक्षिण भारत, कलिंग, सिन्धु, सौवीर,  अवन्ति , बंगाल , मगध , आन्ध्र प्रदेश , देवराष्ट्र , धौलपुर का पश्चिमी  क्षेत्र ,  कावेरी , कोंकण और हूण प्रदेश

शुद्ध , कुलीन, सनातनी संस्कारी  हिन्दू,   इन स्थलों पर  स्वेच्छा से जाने से  बचें ।

  अंगदेश, बंगदेश , कलिंगदेश, सौराष्ट्र और मगध में   कदाचित् तीर्थयात्रा  के कारण जाना पड़े तब जा सकते हैं , अन्यथा कभी मत जाना ।

  पंजाब तो  कभी  भूलकर भी न जायें ।

हमने अपनी ऑखों से देखा है, कि  हमारे  एक परिचित  कुलीन ब्राह्मण  पंजाब की धरती में  गये थे  , 

आज उनके जीवन में शास्त्रीय विधि - निषेधों के प्रति एकदम उदासीनता है ।  यद्यपि  इस कलियुगी  समाज में उनका  ब्राह्मण देवता के रूप में  मानसम्मान बना है पर निजी जीवन में   शास्त्रों से  उनकी एकनिष्ठता  समाप्तप्राय हो चुकी है और   शूद्रवत् जीवन जी रहे हैं ।  

पंजाब में भी युगन्धर नामक पर्वत एवं अच्युतस्थल नामक स्थान इतना घोर अपवित्र है कि यदि कोई भूल से वहॉ का पानी पी ले  और  निवास कर ले  तो  सीधे  घनघोर नरक गिरे बिना  नहीं रहता ।

हमारे आर्यावर्त निवासी  कुलीन सनातनी हिन्दू      सिन्धु, कर्मनाशा और करतोया नदियों को भी  बिना तीर्थयात्रा के उद्देश्य के कभी  पार न करें ।

जो  कुलीन सनातनी  हिन्दू  लोग  हमारे  गिनाये   उक्त प्रदेशों में पैदा हुए हैं ,   उनको  इन प्रदेशों का  दोष वैसे ही नहीं लगता , जैसे विष के कीट को विष  नहीं लगता । अतः उक्त प्रदेशवासी  आस्तिक सनातनी  कुलीन  हिन्दू   चिन्तित न हों , वरन् स्वधर्मपरिपालन में दत्तचित्त रहें।

  

।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।

Tuesday, 4 June 2019

गौ महिमा

जिनका अन्तःकरण अतिशय पवित्र हो जाता है वह गो तत्व को समझ सकते हैं । अत्यन्त पवित्र का तात्पर्य है-  त्रिगुण अर्थात सत्व,  रज तथा तम तीनों से रहित चित्त और बुद्धि गुणातीत हो जाए तो वह पदार्थ की महत्ता को जाना जा सकता है । सनातन धर्म क्या है ? इसके सम्बन्ध में वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड में पर्वतश्रेष्ठ मैनाक श्री हनुमान जी को सनातन धर्म का रहस्य समझाते हुए कहते हैं कि -

#कृते_च_प्रति_कर्त्तव्यमेष_धर्मस्सनातनः ।।

अर्थात्  जिसने हमारे प्रति किञ्चित भी उपकार किया है, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहना , यही सनातन धर्म है । भगवान की सृष्टि में गाय के जैसा कोई कृत अन्य प्राणी नहीं है । प्रेम को स्वीकार करने वाला तथा उपकार का ऐसा उत्तर देने वाला गाय के जैसा कोई प्राणी नही है ।

भगवान् की सृष्टि  में  गाय जैसा कोई  कृतज्ञ प्राणी नहीं है ।  प्रेम को स्वीकार  करने  वाला तथा    उपकार का ऐसा उत्तर देने वाला गाय के जैसा कोई प्राणी नहीं है  अड़सठ  करोड़ तीर्थ एवं तैंतीस करोड़ देवताओं का चलता फिरता विग्रह गाय  है । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर गाय का जो उपकार है , उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । भगवान् के सम्बन्ध में यह बात कही जाती है कि शुक,  सनकादि शेष  और  शारदा भी प्रभु के गुणों का सांगोपांग वर्णन करें,  यह संभव नहीं , उन श्री भगवान के चरणों में कोई प्रार्थना करे कि प्रभु आप अपनी उपास्य देवता गौ माता के गुणों का वर्णन करें ,उनके उपकारों का वर्णन   तो सम्भवतया भगवान् भी गौ माता के चरण रज को मस्तक पर चढ़ाकर अश्रुपूरित नेत्रों से मूक रहकर ही गौ माता की महिमा का वर्णन करेंगे,  ऐसी गौ माता की महिमा है ।

गौ महिमा के विषय में कहा भी गया है  -

आगे गाय , पाछे गाय इत गाय उत गाय ।

गायन में नन्दलाल बसिबौहि  भावै ।।

गायन के संग धावे, गायन में  सचु पावै ।

और गायन की खुर रेणु अंग लपटावै ।।

गायन तैं ब्रज छायो , बैकुण्ठउँ बिसरायो ।

गायन के हेतु कर गिरि लै उठावै ।।

छीतस्वामी गिरिधारी विठ्ठलेश वपुधारी ।

ग्वारिया को भेषधारि गायन में आवे ।।

अर्थात् हम गाय के प्रति जैसा होना चाहिए,  वैसा कोई उपकार नहीं कर पा रहे हैं । गाय ही हमारे प्रति उपकार कर रही है।  अपने तन,  मन,  प्राण से अपने रोम-रोम से अपने दूध,  दही,  घृत,  मूत्र एवं गोमय के द्वारा केवल अपनी उपस्थिति से अपने स्वांश- प्रश्वास के द्वारा,  अपने खुर की  रज से,  गोवंश को छूकर प्रवाहित होने वाली वायु से  जो सम्पूर्ण जगत् का कल्याण करने वाली है , ऐसी गाय का कितना उपकार है समाज पर,  जड़- चेतन सब जीवो पर , उसे कहा नहीं जा सकता ।

गाय के प्रति हम कृतज्ञ हो,  यही सनातन धर्म है ।  हमारी सामान्य सेवा से गाय कृतज्ञ होती है । यत्किञ्चित्  गाय की सेवा बन जाए तो उससे गौमाता इतनी सन्तुष्ट होती है,  इतनी कृपा करती है कि वह अपने सेवक के प्रति कृतज्ञ रहती है । गाय धर्म का प्रतीक है क्योंकि गाय के जैसी कृतज्ञता मनुष्य में भी नहीं है । गाय के प्रति कृतज्ञ होना यही सनातन धर्म है । आज जितनी भी भयंकर - भयंकर समस्याएं हैं,  उन सब का मूल कारण है - रजोगुण और तमोगुण की वृद्धि ।  सात्विकता कहीं दिखाई नहीं पड़ती । भगवान् ने  अपनी सृष्टि में सर्वाधिक सत्वगुण को गाय के भीतर प्रतिष्ठित किया है ।  गाय सात्विकता का आधार एवं पूज्य है,  इसलिए गाय की रक्षा से,  गाय की सेवा से,  गाय की भक्ति से और गव्य पदार्थों के सेवन से मनुष्य में सात्विक विचार तथा सात्विकता आती है।

।। जय श्री  राम ।।

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...