सचल शव और सचल शिव ----
जिन धन्यात्माओं को महान् देवताओं के दर्शन /अनुभव हैं, उन्हीं को देवताओं की चिन्ता और भय भी होता है कि मेरी परम्परा क्या है , मेरा कुल गोत्र. मर्यादा क्या है, मैं अमुक कर्म्म करूंगा तो अमुक अमुक देवता रुष्ट होंगे या प्रसन्न होंगे ।
वही लोग ये चिन्ता करते हैं कि अमुक शास्त्रविधि का मुझे पालन करना है या अमुक निषेध से बचना है ।
वही लोग ये प्रार्थना करते हैं कि अमुक अमुक देवता मुझसे प्रसन्न हों ।
ऐसे जो लोग शास्त्रीय विधि निषेधों की चिन्ता करते हैं , उनके अधीन स्वयं को करने में धन्य अनुभव करते हैं, परम्परागत मर्यादाओं से आकर्षित होते हैं, वे सचल शिव हैं ।
सोया हुआ , अचेत पड़ा हुआ प्राणी जाग्रत प्राणियों और उनके संसार से भयभीत नहीं होता । उसे भय , चिन्ता होती भी है तो मात्र अपने ही स्वप्न जगत् से ।।
जागे हुए में ही जाग्रत प्राणियों और उनके जगत् से भय चिन्ता देखी जाती है ।
आजकल लोग शास्त्रों का तिरस्कार करते हैं तो उसके पीछे प्रधान कारण ये है कि वे अचेत हैं । हम तो ऐसे प्राणियों को सचल शव कहते हैं ।
आजकल चारों ओर सचल शव बहुत ही अधिक हैं, और सचल शिव बहुत ही कम हैं ।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।
सत्मान्य बात लिखी आपको बहुत बहुत भगवान शिव की ओर से दया मिले।।
ReplyDelete