सूतक निर्णय भाग-
*अस्थिःस्पर्शे विचारः- मानुषास्थिनि सरसे बुद्धिपूर्वकं स्पृष्टे त्रिदिनम् विरसेैकदिनम् ,अबुद्ध्या मानुषास्थिनि सरसे स्पृष्टे स्नानं ,विरसे त्वाचमनम्|*
अर्थात् - बुद्धि पूर्वक मनुष्य के दग्ध भीगे हुअे अस्थि स्पर्श करने से तीन दिनका सूतक, सूखे अस्थि स्पर्श में एक दिन का सूतक, यदि अनजाने में भीगे अस्थि स्पर्श हो जायँ तो स्नान, सूखे अस्थि स्पर्श से त्रिः आचमन,
*अमानुषास्थि संस्पर्शे स्नानं विरसे त्वाचमनम्*
अर्थात् पशु पक्षी आदि के मनुष्येतर भीगे अस्थी स्पर्श में स्नान, सूखे अस्थि स्पर्श में तीन आचमन,
*इदंचाशौचमाहिताग्नेरुपरमे संस्कारदिवसप्रभृतिकर्तव्यम्|अनाहिताग्नेस्तु मरणदिवसप्रभृति||*
अर्थात् अग्निहोत्री के मरण में दाह के दिन से सूतक माना जाता हैं, अग्निहोत्री न हो तो मृत्यु दिन से सूतक,
*अस्थिसंचयनंतु "प्रथमे$द्वि द्वितीये$द्वि"इत्यादिना विहितमुभयोः*
अर्थात् अस्थि संचयन पहले दूसरे तीसरे चौथे सातवेँ या नवमें दिन में करैं.
*आशौचिनामन्ने सकृद् भुक्ते यस्मिन् दिने भुक्तं ततः शिष्टाहान्याशौचम्*
अर्थात् सूतकी के स्पर्श का अन्न खाने से जिस दिन खाया हों उस दिन से जितना सूतक बाकी हों उतना खाने वाले को लगता हैं.
*सजातीयस्योत्कृष्टसजातीयस्य वानुगमने सचैलस्नानमग्निस्पर्शो घृतप्राशनं च*
अर्थात् सजातीय या वर्णोच्च सजातीय के शव के पीछे स्मशान में जाने से पहने हुए कपडें में स्नान, अग्नि का स्पर्श और घी का प्राशन करैं.
*ब्राह्मणस्य क्षत्रियानुगमनएकरात्रमाशौचम् ,वैश्यानुगमने पक्षिणी,शूद्रानुगमने त्रिरात्रमिति,एवं क्षत्रियादेरपि हीनवर्णानुयाने एकाहादि*
अर्थात् ब्राह्मण क्षत्रिय के शव के पीछे स्मशान में जायँ तो एक रात्रि सूतक, ब्राह्मण वैश्य के शव के पीछे स्मशान में जायँ तो पक्षिणी, ब्राह्मण शुद्र के शव के पीछे स्मशान में जायँ तो तीन रात्रि सूतक. वैसे क्षत्रिय वैश्य के शव के पीछे स्मशान में जायँ तो एकरात्रि, शूद्र के शव के पीछे जाने से भी एक रात्रि, वैश्य शूद्रो के शव के पीछे जायँ तो एकरात्रि सूतक,
*धर्मार्थद्विजनिर्हरणे तु पदे पदे ज्योतिष्टोमफलं भवति,अवगाहनात् सद्यः शुद्धिः*
अर्थात् धर्म के लिए ब्राह्मण यदि क्षत्रिय वैश्य या शुद्र के शव को कन्धे पर वहन करैं तो पद पद पर ज्योतिष्टोम यज्ञका फल मिलता हैं. नदी या जलाशय में डुबकी मारने से उनकी तुरंत शुद्धि होतीं हैं.
*शुद्रस्य त्वनाथस्यापि धर्मार्थमपि द्विजैर्निर्हरणादि न कार्यमेव*
अर्थात् अऩाथ शुद्र के शव का धर्म के लिए भी वहन न करैं अर्थात् पैसै दैकर शूद्रो से शव वहन करायें जिससे अनाथप्रेत संस्कारका फल मिलता हैं,
*स्नेहादिना सजातीय शवनिर्हरणे एकाह:*
अर्थात् स्नेह से अपनी जाती के शव का वहन करैं तो एक दिन का सूतक लगता हैं. अर्थात् शवदाह दिन में किया हो तो तारेँ दिखने से शुद्धि. रात्रि के प्रारंभ में सूर्यास्त के बाद शवदाह किया हो तो सूर्यदर्शन से शुद्धि होती हैं.
जय श्री राम