Wednesday, 17 October 2018

दयानन्द मतभंजन

#स्वामी_दयानंद_सरस्वती_मत_भञ्जन

स्वामी दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश जब लिखने बैठा था मानो वे भांग पी कर ही बैठा था ऐसा आप को भी विश्वास हो जाएगा सत्यार्थप्रकाश का स्क्रीनशॉट देख कर
स्वामी दयानन्द अपने प्रथम समुल्लास के पृष्ठ संख्या  9 में  जो लिखा है वह उनकी  मूर्खता की पराकाष्ठा देखने को मिलता है ।
स्वामी दयानंद  कहते है की #ब्रह्मा_विष्णु_महादेव नामक पूर्वज विद्वान थे जो प्रब्रह्मपरमेश्वर की उपासना करते थे ||
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मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कभी भी ऋग वेदादि का मुख दर्शन भी न  किया हो यदि किया होता तो ऐसा कहने का दुःसाहस न करते ।
वेदो में स्पष्ट रूप से आया है कि जो इंद्र है वही ब्रह्मा है वही विष्णु है वही शिव है |

त्वम॑ग्न॒ इंद्रो॑ वृष॒भः स॒ताम॑सि॒ त्वं विष्णु॑रुरुगा॒यो न॑म॒स्यः॑ ।
त्वं ब्र॒ह्मा र॑यि॒विद्ब्र॑ह्मणस्पते॒ त्वं वि॑धर्तः सचसे॒ पुरं॑ध्या ॥(ऋ २/१/३)

त्वमिन्द्रस्त्वँ रुद्रस्त्वं विष्णुस्त्वं ब्रह्म त्वं प्रजापतिः (तैत्तरीय आरणक्यम् )
स ब्रह्मा स शिवः स हरिः सेन्द्रः सोऽक्षरः परमः स्वराट् (नृसिंहतापनि उपनिषद )

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवन स्वयं कहते है
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां (गीता)

उस परब्रह्म परमात्मा के दिब्य विभूतियों का अंत नही वही कार्यकारण रूप से ब्रह्मा ,विष्णु ,और शिव है ।
जिस कारण श्रुतियों में नेति नेति कह कर उस परब्रह्म परमात्मा के विभूतियों के अनन्त को दर्शाया है ||
सत्व ,रज:,तम: यह तीनों गुण प्रकृति के है एक परम पुरुष उक्त तीन गुणों से युक्त होकर इस विश्व की सृष्टि स्थिति एवं संहार हेतु  सत्व गुण से हरी: रजो गुण से ब्रह्मा,एवं तम गुण से हर संज्ञा को प्राप्त होते है ।

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