अधिकांश हिंदुओं का यह मानना है कि वाल्मीकि ऋषि शूद्र वर्ण से थे ऐसा नही है।
वाल्मीकि ऋषि ब्राह्मण ही थे, प्रत्येक विषय हमारे शास्त्रों में लिखित है, स्वाध्याय करें, समाधान पाएं, मूर्खों कर जाल में न फंसें।
वाल्मीकि रामायण के यह 2 श्लोक देखें...
संनिबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विंशत्सहस्रकम् ।
उपाख्यानशतं चैव #भार्गवेण तपस्विना ॥ 26॥
(7/94/26 वा.रा.)
उन भृगुवंशी(ब्राह्मण) तपस्वी कवि के बनाये हुए इस महाकाव्य मे चौबीस हजार श्लोक ओर एक सौ उपाख्यान है ।
प्रचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दनः ।
न स्मराम्यनृतं वाक्यमिमौ तु तव पुत्रकौ ॥ 19॥
(7/96/19 वा.रा.)
हे रघुवंशी राम मैं प्रचेता नामक ऋषि का दशवां पुत्र हुं ।
अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ।
पतीत् प्रजानामसृजं महर्षिनादितो दश ॥
मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम् ।
प्रचेतसं वशिष्ठं च भृगुं नारदमेव च ॥
मनु स्मृति के अनुसार ब्रह्माजी के सर्व प्रथम 10 पुत्र हुए जो ब्राह्मण ऋषि थे ।
मरीची
अत्री
अङ्गिरस
पुलत्स्य
पुलह
क्रतु
प्रचेता
वशिष्ठजी
भृगुजी
नारदजी ।
(मनु.स्मृ. 1/34-35)
इनमे से प्रचेता नामक ब्राह्मण ऋषि के 10 वे पुत्र वाल्मीकि जी थे ।
प्रचेता का पुत्र होने के कारण उन्हें प्रचेतस भी कहा जाता है।
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