शबरी जी : शंका समाधान ----
अध्यात्म रामायण में शबरी जी के विषय में दो विशेषण हैं -
(१) हीनजातिसमुद्भवा
(२) अधमजन्मा
और शबरी के आचारकर्म के भी दो ध्यातव्य विशेषण हैं -
(१) अर्घ्यादिभिरादृता
(२) सुगन्धैः सानुलेपनैः (सम्पूज्य)
अर्थात् शबरी हीन जाति में पैदा हुईं थीं , वे अधमजन्मा थीं और उन्होंने अर्घ्य, पाद्य से पूजन करके भगवान् राम को तिलक भी लगाया ।
अब जो लोग शबरी को शूद्रा समझते हैं , उनका विरोध अर्घ्य, तिलकादि पूजन कर देते हैं , क्योंकि शूद्रा स्त्री को क्षत्रिय को अर्घ्य , पाद्य देने और स्पर्श करते हुए गन्ध लेपन करने का कितना शास्त्रीय अधिकार है , ये सर्वविदित है ।
ऐसे में प्रश्न ये है कि फिर शबरी जी के लिये प्रयुक्त दो जातिपरक विशेषणों का क्या भाव है ? इसका समाधान यह है कि शबरी जी के उक्त दो विशेषण या तो उनकी स्त्री जाति होने के कारण ही प्रयुक्त हुए हैं (ब्राह्मणी पक्ष में) क्योंकि जाति शब्द केवल वर्णगत ही नहीं प्रयोग हुआ करता , वरन् योनिगत भी प्रयुक्त होता है , जैसे - मनुष्य जाति , पशु जाति , पक्षी जाति , स्त्री जाति , पुरुष जाति आदि । पुरुष जाति के सापेक्ष स्त्री जाति के अवर होने के कारण ही उक्त दो विशेषणों का होना संगत है । शास्त्रानुसार स्त्री जाति को पापयोनि कहा गया है । ( मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येsपि स्युः पापयोनयः । स्त्रियो वैश्यस्तथा शूद्रास्तेsपि यान्ति परां गतिम् ।। ) अतः शबरी जी का स्वयं के स्त्री जाति होने के कारण ही स्वयं को हीनजातिसमुद्भवा कहा गया । यही संगत है ।
तभी तो गोस्वामी जी ने शबरीमुख से कहलवाया भी है - अधम ते अधम अधम अति नारी । तिन्ह मंह मैं मतिमन्द अघारी ।।
अथवा क्षत्रिय जाति से अवर जाति - अनुलोम संकर क्षत्रिय, वैश्य जाति आदि के कारण प्रयुक्त हुए ।
श्री धर्मसम्राट् करपात्री जी महाराज ने रामायण मीमांसा ग्रन्थ में शबरी जी को ब्राह्मणी बताया है ।
कृतातिथ्य रघुश्रेष्ठम् - शबरी जी ने रघुकुल के राम चन्द्र का आतिथ्य किया था । कहा जाता है , भरत के अनुमोदन पर गिरि काननरूप अरण्यभाग का शासन राम ही कर रहे थे । राजा आतिथ्य का अधिकारी है । ऐसी स्थिति में शबरी जी का आचार शास्त्रोचित ही था ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम भला शास्त्रविरुद्ध आचार को अनुमोदन कर भी कैसे सकते थे !
राम वशिष्ठ ऋषि से शिक्षा पाये थे, वशिष्ठ धर्मसूत्र , वशिष्ठ स्मृति जन्मना वर्णव्यवस्था की ही पोषक है । स्वयं राम के पूर्वज महाराज मनु की मनुस्मृति जन्मना वर्णव्यवस्था का ही अनुमोदन करती है । अतः राम अपने गुरु , पिता - पूर्वजों के ही मार्ग पर चले थे, उन्हीं की मान्य आचार परम्परा को पोषित किये थे , ये सिद्ध है ।
।। श्रीरामस्य जयोsस्तु ।।
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