Tuesday, 11 February 2020

भोजन के वैदिक नियम

सज्जनो !----
यदि आप कौवे का जन्म नहीं लेना चाहते तो ध्यान दें ----
भोजन करने के सामान्य नियम -
१. सदैव शुद्ध होकर, आचमन करके ही भोजनालय ( रसोई) में भोजनार्थ प्रवेश करे ।
२.उत्तरीय ( दुपट्टा) और धोती पहने ।
३. श्रीखंड चंदन आदि का तिलक लगा के भोजनालय में जाये ।
४. भोजनालय गोबर से लीपा हो ।
५. भोजन से पूर्व ब्राह्मण चतुष्कोण , क्षत्रिय त्रिकोण , वैश्य गोल मण्डल व शूद्र केवल जल से अभिषेक करे ।
६. #पितुन्नुस्तोषम्० इत्यादि मन्त्र से पहले अन्न की स्तुति करे ।
७. पुनः मानस्तोके नमो वः० मन्त्र से उस परोसे अन्न को अभिमन्त्रित करे ।
८. फिर बलिवैश्वदेव यज्ञ ( आहार का कुछ अंश मन्त्र के साथ बलि देना ) करे ।
९. फिर अन्तश्चरसि० मन्त्र से भगवान् विष्णु का ध्यान करे, फिर अमृतोपस्त० मन्त्र से आचमन करे ।
१०. फिर अन्न में अमृत का ध्यान करके अपने मुख में पॉच आहुतियॉ दे - प्राणाय स्वाहेति मन्त्रों से ।( वाजसनेयी शाखानुसार )
११. ये प्राणाहुतियॉ दॉत से न काटे , वरन जीभ से चाट कर ही ग्रहण करे ।
१२. पहला कौर अंगुठे + मध्यमा , दूसरा मध्यमा+अनामिका, तीसरा कनिष्ठा+तर्जनी , चौथा अंगूठे के अतिरिक्त शेष चार , पॉचवा पॉचों अंगुलियों से ग्रहण करे ।
१३. बॉये हाथ से, पैर से, पेडू से , सिर से या विपरीत दिशा में रखा अन्न न छुए ।
१४. भोजन के अन्त में अन्न लेकर मद्भुक्तोच्छिष्टशेषं० मन्त्र पढ़कर अंगूठे व तर्जनी के बीच से गिरा दे ।
१५. फिर हाथ में जल लेकर अमृतापिधानम्० मन्त्र से हाथ का आधा जल पीकर शेष आधा जल धरती पर गिराये ।
१६. फिर अर्थिनां सर्वभूतानां ० मन्त्र पढ़कर भोजन स्थान से कुछ हटकर भरकुल्ला जल और सींक ( खरका ) से मुंह साफ करें ।
१७. फिर पुनः अच्छी तरह कुल्ला व आचमन कर दाहिने पैर के अंगूठे में अंगुष्ठमात्र पुरुष की भावना से ईशः सर्वस्य जगतः० मंत्र पढ़ते हुए हाथ से जलधारा गिराए ।
१८ फिर पेट पकड़कर शर्यातिञ्च० मंत्र पढ़े और नमो भगवते वाजसनेयाय याज्ञवल्क्याय दो बार कहते हुए हुए स्मरण करे , और मुंह को अच्छी तरह साफ कर मुख शुद्धि करे ।

                   ।।  जय श्री राम ।।

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