कैसे करें साधना ?
श्री आद्य शंकराचार्य कहते हैं , आपका चित्त है वस्त्र ।
कर्मकाण्ड #पानी है , कृष्णभक्ति #क्षार (रीठा/साबुन आदि) है ।
जैसे पानी के साथ में क्षार (रीठा/ साबुन आदि ) लगाने से वस्त्र अच्छी तरह चमक जाते हैं, वैसे ही कर्मकाण्ड के साथ में कृष्ण भक्ति करने पर चित्त शुद्ध हो जाता है ।
[वसनमिव क्षारोदैर्भक्त्या प्रक्षाल्यते चेतः।। - श्री आद्य शंकराचार्य ।]
केवल पानी से जमा मैल नहीं छूट पाता, साथ में क्षार की भी आवश्यकता पड़ती है , इसीलिये श्री आद्य शंकराचार्य कहते हैं शुद्ध्यति हि नान्तरात्मा कृष्णपदाम्भोजभक्तिमृते ; और यदि जल नहीं लगायेंगे तो केवल क्षारमात्र से मैल और बढ़ने की सम्भावना हो जाती है ।
इसलिये जैसे पानी और क्षार दोनों से वस्त्र अच्छी तरह स्वच्छ होता है , वैसे ही नित्य -नैमित्तिक -प्रायश्चित्त कर्म और श्रीकृष्ण भक्ति दोनों ही आवश्यक हैं ।
पहले पानी से अच्छी तरह वस्त्र भिगाइये, क्षार (रीठा/साबुन आदि) लगाकर वस्त्र को खूब अच्छी तरह रगड़िये , फिर से पानी से धो लीजिये । जैसे वस्त्र धोया जाता है , वैसे ही चित्त भी शुद्ध किया जाता है ।
[नित्यकर्म - संध्या, स्वाध्याय आदि पंच महायज्ञ
नैमित्तिक कर्म - सोलह संस्कार आदि
प्रायश्चित्त कर्म - चान्द्रायणव्रत आदि ]
#प्रतिलिपि(कॉपी-पेस्ट) सदैव स्वागत है ।
साभार - श्री आद्यशंकराचार्य
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।
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