Saturday, 6 July 2019

स्मार्त्त कौन होतें है ?

ये कट्टर स्मार्त्त कौन होते हैं ?
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जिस ब्राह्मण के घर पर  कोई भी धार्मिक कृत्य करने से पूर्व        समस्त वैदिक स्मृतियों के वचनों पर विचार हो और   स्मृतियों के ही अनुरूप  उनके विविध वचनों के    बलाबल  का   इस प्रकार से   सारभूत निर्णय हो , कि समस्त   वैदिक स्मृतियॉ    सार्थक हो जायें ,  और न्याय-मीमांसादि शास्त्र धन्य हो जाये ,  उसे कहते हैं स्मार्त्त  ब्राह्मण  ।।

और जब एक ब्राह्मण स्मृतियों के सार सर्वस्व  को पूर्ण निष्ठा से    स्वीकार करता है, तो उसे ही हम कहते हैं कट्टर स्मार्त्त ब्राह्मण ।

  गाणपत्य गणेश को ,  शाक्त  शक्ति को, सौर सूर्य को ,  शैव शिव को  और वैष्णव  विष्णु को ही एकमात्र    सर्वोच्च देवता बताते हैं ।

जो पॉचों देवताओं को एक ही  परमेश्वर , एक ही परमेश्वर को पॉचों देवताओं के रूप में देखे,  उसे कहते हैं स्मार्त्त मतानुयायी  ।

एक ही ईश्वर अपनी जिस माया शक्ति से एक नाम  रूप वाला है, उसी माया शक्ति से  वही  दूसरे , तीसरे,   चौथे,  ...अनन्त नाम रूपों  वाला होने में सर्वथा सक्षम है ।

ऐसे  एकधा , द्विधा , त्रिधा  प्रभृत् अनन्तपर्यन्त   नाम रूपों  वाले   'नाम- रूपवान्  परमेश्वर'  में जिसकी   पूर्ण निष्ठा है, उन धन्यभाग्यवानों  को कहते हैं  कट्टर स्मार्त्त मतानुयायी  ।

परमेश्वर के विष्णु रूप में निष्ठा होने पर वही स्मार्त्त  उर्ध्वपुण्ड्रधारी वैष्णव  दीखता  है,  शिव रूप में  निष्ठा होने पर वही त्रिपुण्ड्र धारी शैव  दीखता है  , जिस देवरूप में निष्ठा करता है,  उसी देवता के अनुरूप  शास्त्रीय मर्यादा में स्वयं भी  दीखता  है  ।   अपने ईष्ट रूप के अनुरूप ही वह   पंचायतन देवताओं की उपासना करता है -

गणेश पंचायतन । , शक्ति पंचायतन ।, सूर्य पंचायतन ।, शिव पंचायतन ।, विष्णु पंचायतन ।

पंचायतनोपासना की  अधिक जानकारी हेतु   देखें  पुस्तक -

नित्यकर्म पूजाप्रकाश ।
गीताप्रेस गोरखपुर ।।

।। जय श्री राम ।।

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