Saturday, 13 July 2019

क्या भक्ति पथ में ज्ञान और गायत्री की जरुरत नहीं है?

#कथन - भक्ति पथ अपने आप मैं परिपूर्ण है , वहॉ ना यज्ञ ना गायत्री की आवश्यक्ता रह जाती है ।

///Bhakti path apne ap mai paripurn hai vaha na yagya na gyatri ki avashyakta rah jati hai///
(एक पाठक का वक्तव्य)

#स्पष्टीकरण -

  (१) यज्ञविमुख के लिये तो यह लोक ही भी नहीं है , कहॉ तो इस लोक से अन्य -

नायं लोकोsस्त्ययज्ञस्य कुतो़sन्यः कुरुसत्तम।।
[श्रीमद्भगवद्गीता  ४।३१]

(२) यज्ञ, दान और तपरुपी कर्म त्याग करने योग्य नहीं हैं अपितु ये तो अवश्य करने चाहिए; क्योंकि यज्ञ, दान, और तप - ये तीनों कर्म बुद्धिमान् मनुष्य को पावन करने वाले हैं -

यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् ।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ।।

[  श्रीमद्भगवद्गीता १८।५  ]

(३) भगवत्कृपा तभी हो सकती है जब हम भगवान की आज्ञा का पालन करें; और शास्त्र ही भगवान की आज्ञा है-

श्रुतिस्मृती ममैवाज्ञे यस्त उल्लङ्घ्य वर्तते।
आज्ञोच्छेदी मम द्रोही मद्भक्तोsपि न वैष्णवः।।

अतः सच्चा भगवत्प्रेमी वही है जो शास्त्र का उल्लंघन नहीं करता। वैष्णवधर्म का लक्षण करते हुए कहा है-

न चलति निजवर्णधर्मतो सममतिरात्मसुहृद्विपक्षपक्षे ।

वस्तुतः भगवत्कृपा तो सर्वत्र समान रूप से विद्यमान है । उसे केवल अभिव्यक्त करना है और वह अभिव्यक्ति भगवदाज्ञा-पालन से ही हो सकती है ।

[ भक्तिसुधा , श्री करपात्री जी महाराज  ]

।। जय श्री राम ।।

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