Thursday, 25 July 2019

दिग्विजय क्या है ?

प्रायः सभी प्रमुख  धर्माचार्य एक शब्द प्रयोग करते हैं - #दिग्विजय।।

भारत के चारों ओर शास्त्रार्थपूर्वक  धर्म संस्थापना  के कार्य को करने वाले  अपने आचार्य के लिये कहते हैं कि हमारे फलाने आचार्य ने दिग्विजय की ।

वैसे कुछ   तथाकथित इस्कॉन  वाले  तो  सबसे अलग हैं , वे ये कहते हैं कि प्रभुपाद ने विश्व का१४ बार भ्रमण किया , सच्चे दिग्विजेता तो हमारे प्रभुपाद रहे । मानो जैसे कि  इस एशिया यूरोप वाले भूमंडल के अतिरिक्त  कहीं अन्य कहीं कोई सृष्टि हो ही नहीं ।  वैसे //अन्य लोकों की सुगम यात्रा // नामक ग्रन्थ इन्हीं इस्कॉन वालों  ने छापा है , अब जरा  स्वयं  विचार कीजिये  कि कितनी यात्रा प्रभुपाद दिग्विजेता बनने हेतु किये ।

कतिपय आर्य समाज वाले भी इसी भ्रम में डूब गये और कृण्वन्तो विश्वमार्यम् का नारा लगाने वालों द्वारा आनन फानन में    दयानन्द दिग्विजय लिख डाला गया , उनको यही पता नहीं कि   उनके  स्वामी दयानन्द ने दिशाओं की कितनी सीमा तक की यात्रा कर धर्म संस्थापना की  । न जाने किस मुंह से वे  दिग्विजय शब्द प्रयोग कर जाते हैं ।

आप विचार कीजिये ,  वैसे दिशाओं का तो अन्त नहीं है , फिर भारत में ही भ्रमण करके दिग्विजय क्यों  कह दिया जाता है ?   दिशाऐं विजय करना क्या है ?

क्योंकि सत्य ये है कि भारत  की सीमा में ही दिशाओं का अन्त जाता है ,  यही भारत का महत्त्व है ।    अन्त हो गया  का तात्पर्य है कि धर्म-कर्मभूमि भारत में सब पूर्णता को प्राप्त हो चुका है ,   वेदभाष्य के माध्यम से सर्वप्रथम श्री आद्य शंकराचार्य भगवान् ने इस आध्यात्मिक रहस्य को  अभिव्यक्त किया , (जिसे  सबने  माना , जिन्होंने नहीं माना , वे भी किसी न किसी रूप में  नाक रगड़ कर मान ही गये, क्योंकि स्वयं के आचार्य महानुभाव को  दिग्विजेता घोषित करने  से  प्रायः कोई पीछे नहीं रहे   ) इसलिये भारत स्वयं में  परिपूर्ण है ।

।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।

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