Saturday, 25 May 2019

हम अद्वैती सबसे महान्

हम अद्वैती  सबसे  महान्   -----

कोई कहते हैं हमें  तो अपने उपर कोई ईश्वर चाहिये, जो हम पर शासन करे,   यही  हमारा  बढ़प्पन है , यही स्वराज है ।

  कोई कहते हैं , हमें  तो  हमसे  नीचे  कोई दास चाहिये, जिन पर हम शासन करें, यही  हमारा  बढ़प्पन है , यही स्वराज है ।

पर हम कहते हैं ----

'आत्मा'  को जान लेने के बाद  कौन किसका दास बने रहना चाहता है ? और कौन किस पर शासन करेगा?

सेवक हो या स्वामी - दोनों को  सेवा विषयक   सम्भावित त्रुटि का वास्तविक  भय बना रहता है ।  स्वामी को भय है कि सेवक  सेवा से  विमुख न हो जाये,  और सेवक को भय है कि स्वामी सेवा से असन्तुष्ट न हो जाये !   जहॉ  दो हैं, वहॉ तो भय भी है ।

पर हमें तो पूर्णतः अभय चाहिये ।

हमें  वस्तुतः ना  तो  हमारे उपर  कोई  अन्य   ईश्वर चाहिये  ना  हमारे नीचे  कोई  अन्य दास , हमें तो ये चाहिये कि हम ही वस्तुतः  सब हो जायें,  ये  जितना भी   उपर होना, नीचे  होना है,    ये  भी हम ही से सब कल्पित हो । यही   वास्तविक बढ़प्पन है ।  यही  तो असली  स्वराज है ।

सर्वत्र हम ही हम हों ।  इसी   में   परम सन्तुष्टि है, इसी  बढ़प्पन में असली सुख है । इसी  अपने स्वराज में परम आनन्द है ।

यो वै भूमा तत् सुखम्, नाल्पे सुखमस्ति,भूमैव सुखम्  - यही हमारी विचारधारा है ।

।। जय श्री राम ।।

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