एक शोधार्थी की खोज -
ये ब्राह्मण लोग आखिर मन्दिरों में करते क्या हैं ?
ब्राह्मणों की विरोधी पुस्तकें जैसी आजकल बाजारों में मिलती हैं, उनको पढ़कर मुझे तो लगा था वे लोग वहॉ उन भवनों के अन्दर बैठकर शूद्रों को खूब गालियॉ देते होंगे, उनको कत्ल करने के हथियार बनाते होंगे,
पर अन्दर जाकर उनको देखा तो वे लोग तो किसी एक मूर्ति को प्रणाम कर रहे थे और एक संस्कृत का वाक्य बोल रहे थे - सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ।
उनके इस वाक्य का मतलब क्या है , ये पता किया तो मेरे होश उड़ गये । इसका तो सीधा सीधा मतलब यही आ रहा था कि शूद्र सुखी हों , निरोगी हों, उनका कल्याण करना , उनको कभी भी दुःख का भागी ना बनना पड़े ! मुझे आश्चर्य हुआ कि जिनको शूद्रों के शत्रु बताया जाता है , वे लोग आखिर उनके लिये ऐसी प्रार्थना कैसे कर सकते हैं ! उनको तो शूद्रों को दुखी करने की प्रार्थना करनी चाहिये थी ।
फिर मुझे लगा कि शायद हवन में जो मन्त्र बोलते हैं, उसमें वे शूद्रों के दुखी होने की बात कहते होंगे या फिर अग्नि से कहते होंगे कि तुम शूद्रों का घर जला दो , पर वहॉ भी ऐसा नहीं था , वे लोग वहॉ भी ईश्वर की स्तुति कर रहे थे और कह रहे थे कि विश्व में चारों ओर सुख शान्ति हो, हमारे पास जो कुछ भी है, वो आपका है । आपकी सम्पत्ति से सबको सुख मिले ।
फिर मुझे लगा कि मन्दिरों में न सही पर जीवन में कभी तो शूद्रों के उपर कोई घातक आक्रमण कर उनके घर लूटने की बातें कहते होंगे , पर उनके जीवन को संचालित करने वाले जो इनके धर्मशास्त्र हैं , उनकी नियमावली को पढ़ा तो पता चला कि वे तो जीवन का ७५% घर के सुख त्याग कर जंगलों में व्यक्तिगत तपस्या में बिताने को बोला है , शेष २५% में समाजसेवा ।
।। जय श्री राम ।।
No comments:
Post a Comment