Friday, 26 April 2019

अद्वैत द्वैत का विरोद्धि नहीं है

यदि  केवल अद्वैत मत  ही सत्य सिद्धान्त है  तो  अद्वैतवादी  द्वैतियों की ही भॉति ,   सभी द्वैतवादियों के प्रति  आक्रामक शैली में  अपना प्रचार क्यों नहीं करते ?

#उत्तर -  अद्वैतवादी  निस्वार्थता के धरातल पर अवस्थित  होते हैं इसलिये ।

देखो ऐसे समझो -

जैसे किसी  निर्जल प्रदेश में  प्यासे के द्वारा पानी का पता पूछने पर  मधुर  पवित्र और   प्राप्तव्य  जलस्रोत  का  जानकार कहता है कि जलस्रोत  अमुक  दिशा में है , इस पर यदि वह किसी दूसरे  अज्ञानी व स्वार्थी  तार्किक   के द्वारा  भ्रमित किये  ( बरगलाये ) जाने पर उस पूर्व जानकार की बात  बार - बार  करुणापूरित होकर समझाये जाने पर भी नहीं मानता तो इससे जानकार का कुछ नहीं बिगड़ता ,

वो जानकार यही सोचता है अन्ततः  कि कोई बात नही, जाने दो इसे , अन्ततः आना तो अमुक दिशा को ही पडेगा , क्योंकि  बिना पानी के प्यास कैसे बुझा लेगा !

और इसी प्रकार,दूसरी बात ये भी है न कि हम लोग  द्वैतवादियों से  व्यक्तिगत विरोध वाला भाव  नहीं रखते क्योंकि  हाथी   पर बैठा हुआ व्यक्ति धरती  पर खडे व्यक्ति के द्वारा अपनी एड़ियॉ उठाकर  उच्च स्वर से ये कहे जाने पर कि  " मैं तुझसे भी अधिक ऊंचाई में  हूं "  ,   इस पर    कोई  स्पर्धा नहीं करता !  

ठीक इसी प्रकार द्वैतवादियों से हमारी कोई व्यक्तिगत स्पर्धा ही नहीं है ।

#अद्वैतं_परमार्थो_हि #द्वैतं_तद्भेद_उच्यते।
#तेषाम्_उभयथा_द्वैतं #तेनायं_न_विरुद्ध्यते ।।

।। जय श्री राम ।।

No comments:

Post a Comment

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...