उपनयन के लिए परिक्षण की आवश्यकता
#नापरिक्षितं_याजयेत्_नाध्यापयेन्नोपनयेत्।।विष्णुधर्मे।।
(1) कुमार के माता पिता के गोत्र प्रवर को जानना (समानगोत्र समानप्रवर के माता-पिता से जनित संतान त्याज्य हैं)
(2)मातृकुल और पितृकुल में किसीने असवर्ण विवाह किए हैं कमसे कम तीनपिढी़ की जाँच (कलियुग में असवर्णविवाह त्याज्य हैं, तज्जनित संतान वर्णसंकर होती हैं)
(3)पिता पितामह प्रपितामह के जनेऊ की जाँच वेद-शाखा सहित (परशाखा में किया उपनयन से द्विजत्व की सिद्धि न होने के कारण स्वशाखीयोपनयनकाल 16वर्षव्यतिक्रान्ते व्रात्य हो जाते हैं और व्रात्य से जनित संतान भी व्रात्य ही हैं..
(4) पिता पितामहादि पूर्वजो की परम्परा विवाहकालिक उपनयन की है या नहीं, यदि विवाह काल 16 से पहिले हो तो ठिक परंतु 16 से अधिक उम्रमें विवाहसमय हुए जनेऊ-संस्कार व्रात्यता सूचक ही हैं..
(4) कोई परिवार के सदस्य ने विदेशगमन किया हैं,यदि किया हो तो वह संयुक्तपरिवार में साथ में रहता हैं?(पतितोत्पन्नः पतितो भवतीत्याहुः।। बौधायनधर्मे स्मृतिवचन।। पितुर्वा भजते शीलं मातुर्वोभयमेव वा ।।मनुः।।)
(5)पिता को यदि अयाज्ययाजक दोष लगगया हो तो प्रायश्चित्तपूर्वक पुनरुपनयन के बिना पिता भी अयाज्य हैं, कुमार का उपनयन स्वयं नहीं करवा सकते..
(6) अनाथालय या असवर्ण से दत्तक परिग्रह किया हुआ कुमार न हो..
Saturday, 20 April 2019
उपनयन के लिए परीक्षनीय बिन्दु
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