Tuesday, 16 April 2019

नारायण शब्दार्थ विचार

आज की कक्षा http://sriarshavidya.org/bhagvata-gita-registration में उपोद्घात भाष्य का मंगलाचरण लिया गया एवं नाराण पदार्थ विचार किया गया।

भाष्य उपोद्घात से प्रारम्भ होता है। उपोद्घात का अर्थ हुआ परिचय भाष्य। इसे संगति भाष्य या अवतरणिका भाष्य भी कहा जाता है। शास्त्रों की विषय वस्तु को स्थापित करने के लिए किया गया विश्लेषण उपोद्घात कहा जाता है।

ओम् नारायणः परोव्यक्तादण्डमव्यक्तसम्भवम्।

अण्डस्यान्तस्त्विमे लोकाः सप्तद्वीपा च मेदिनी।।

पदच्छेद - नारायणः परः अव्यक्तात्, अण्डं अव्यक्त सम्भवं अण्डस्य अन्तः तु इमे लोकाः सप्तद्वीपा च मेदिनी।

सरल पदार्थ - नारायणः - परमात्मा, परः - परे, अवक्तात्- जो अव्यक्त है उस कारण प्रपंच से, अण्डं - सूक्ष्म प्रपंच, अव्यक्त - कारण प्रपंच, सम्भवं - उत्पत्ति, अण्डस्य - सूक्ष्म प्रपंच के, अन्तः - में ही होना, तु - के विषय में, इमे - यह सब, लोकाः - विभिन्न लोक, सप्तद्वीपा - भूलोक जहां जम्बू, प्लाक्ष, कुश, क्रौन्च, शाक, शाल्मल व पुष्कर आदि सात द्वीप हैं, च - और, मेदिनी - पृथ्वी।

सार - परमात्मा कार्य कारणातीता। परमात्मा कार्य कारण से और सभी प्रपंच से परे है।

सरल भाषार्थ - नारायण माया से भी परे हैं। इस माया से ही सूक्ष्म जगत का उत्पन्न होता है। जिसमें सारे लोक और सात द्वीपों वाला भूलोक है।

नारायण पदार्थ विचार —

जल को नारा कहा गया है, जल नर का अर्थात जीव का कार्य अथवा पुत्र है। हिरण्यगर्भ ही प्रथम उत्पन्न होता है, वह ही प्रथम जीव है उससे उत्पन्न होने से जल को नारा कहा गया है। जल परमात्मा का आश्रय है, नारायण सृष्टिपूर्व जल में अनन्तशयन करते हैं अत: जल को उनका अयन कहा गया है। नारा ही इनका अयन है अत: परमात्मा को नारायण कहा गया है। ऐसा [मनुः १.१०] मनुस्मृति आदि ग्रन्थों से सिद्ध है एवं स्थूलदृष्टि वालों के लिए यह नारायण शब्द का अर्थ है। 

सूक्ष्मदृष्टि जिनकी है ऐसे तत्वदर्शी पुन: विचार करते हैं कि नर शब्द से मात्र मनुष्य नहीं अपितु चराचरात्मक सम्पूर्ण शरीरधारी हैं। उनमें नित्य ही सन्निहित चिदाभास, आत्मा का अन्त:करण में बनने वाला प्रतिबिम्ब, जो कि जीव नाम से जाना जाता है वही नारा है। दर्पण में जिस प्रकार हमारा प्रतिबिम्ब बनता है जो कि वास्तविक न होकर आभास मात्र होता है। उसी प्रकार आत्मा का अन्त:करण में बनने वाला प्रतिबिम्ब होता है, जिसे चिदाभास कहा जाता है। जो कि चित् का आभास है, वह जीव कहलाता है। एक ही आत्मा होने पर भी उपाधि भेद से भिन्न—भिन्न अन्त:करण में भिन्न—भिन्न प्रतिबिम्ब होने से एक ही आत्मा का बहुलता से आभास होता है। जिस प्रकार एक ही चन्द्र का प्रतिबिम्ब अनेक तालाबों में बनने से बहुत सारे चन्द्र प्रतीत होते हैं उसी प्रकार बहुत सारे जीव प्रतीत होते हैं। इस कारण नारा ऐसा बहुवचन का प्रयोग किया गया है। तेषां अयनं, इस नारा अर्थात् चिदाभास का जो अयन अर्थात आश्रय है वह आत्मा है। बिम्ब ही प्रतिबिम्ब का आश्रय होता है, बिम्ब के बिना प्रतिबिम्ब नहीं रहता है। इस प्रकार चिदाभास का आश्रय होने से परमात्मा ही सबका नियामक अन्तर्यामी नारायण है।

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