उड़िया बाबा के नाम पर निजी दुराग्रह फैलाने वालों का भ्रमोच्छेदन -
कुछ लोगों द्वारा उड़िया बाबा के श्रोत्रिय होने पर हमारा प्रश्नचिन्ह उठाना बहुत खटक रहा है , पर श्री आद्य शंकराचार्य भगवान् पर जो आक्षेप लगाया गया है, उस पर उनके मुख में द ही जम गयी है। ये वे लोग हैं, जिनको अपने दुराग्रह से इतनी चाहत है कि स्वयं वेदवेद्य भगवान् शंकर पर आक्षेप से भी कोई लेना देना नहीं ,
उनके लिये दर्पण -
जब उड़िया बाबा ने बता डाला श्री आद्य शंकराचार्य को ही पक्षपाती -
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श्री आद्य शंकराचार्य का मत पक्षपातपूर्ण जान पड़ता है ।
- उड़िया बाबा । गीता तत्त्वालोक , पृष्ठ ३०५
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श्री आद्य शंकराचार्य के मत का खंडन करने के लिये उक्त बाबा महाशय ने इतना खोखला तर्क दिया कि पढ़कर ही हंसी आती है ,
#कुतर्क - स्त्री पापयोनि है तो उसके हाथ का भोजन क्यों करते हैं सभी ? जबकि स्त्री के बिना कोई यज्ञ सम्पन्न नहीं होता ।
#भंजन - महिषादि पशुओं का दुग्धपान करने से क्या उनका निम्नयोनित्व समाप्त हो जाता है ? किन्तु उनके दुग्धादि को ग्रहण करने की भी एक व्यवस्था है कि कब ग्राह्य है, कब नहीं । यज्ञ की ही बात करें तो द्रव्य यज्ञ तो स्थावर योनियों को प्राप्त वृक्षादि के सहयोग के बिना भी नहीं पूर्ण हो पाता , तो क्या उनको ब्राह्मणादि के तुल्य पुण्ययोनि मान लेना चाहिये ? तब तो सांख्यादि शास्त्रों का प्रसिद्ध तमः प्रधान , सत्त्वप्रधान , रजःप्रधान प्राणियों का शास्त्रोक्त गुण-कर्मविभाग ही विध्वस्त हो जायेगा । अनृत में स्त्री की स्थिति बताने वाले मन्वादि स्मृतियों का क्या कोई महत्त्व नहीं ? विचार करना चाहिये ।
श्री गोस्वामी तुलसीदासजी , श्री राम चरितमानस के अरण्यकाण्ड में महान् भगवद्भक्त श्री शबरी जी के मुख से अधम ते अधम अधम अति नारी की जब अनुश्रुति कहलवाते हैं , तो क्या वहॉ पर वे शबरी जी झूठ बोलती हैं , जिनके दर्शन के लिये स्वयं वेदवेद्य भगवान् श्री राम पधारते हैं ?
श्री भगवान् आद्य शंकराचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पापा योनिः येषां ते पापयोनयः पापजन्मानः , अर्थात् जिन प्राणियों के जन्म का कारण पाप हैं , वे पापयोनयः कहलाते हैं ।
जब अपने जन्म में पाप की प्रधानता थी , तभी तो पुरुषजन्मराहित्यता आयी , अन्यथा क्यों आती ? निवृत्तिमूलक ज्ञानमार्ग और प्रवृत्तिमूलक कर्ममार्ग - ये दो ही सनातन मार्ग हैं , जिनका गीताशास्त्र में उपदेश हुआ है , और इन दोनों मार्गों में क्रमशः ब्राह्मण और क्षत्रिय - ये दो पुण्ययोनियॉ ही अधिकृत हैं ।
देवराज इन्द्र ने ब्रह्महत्या का एक भाग जो स्त्रियों में बांटा था , उसी के फलस्वरूप रजस्वला होती हैं, ( शश्वत्कामवरेणांहस्तुरीयं जगृहुः स्त्रियः । रजोरूपेण तास्वंहो मासि मासि प्रदृश्यते ।।)
और उड़िया बाबा महाशय ! कोई भी शिष्ट व्यक्ति रजस्वला स्त्री के हाथ का भोजन तो करता नहीं , ना ही यज्ञ सम्पन्न करते हैं ।
ये सब विषय तैत्तिरीय संहिता से लेकर बृहदारण्यरोपनिषद् पर्यन्त न केवल वेदों में प्रसिद्ध है, वरन् आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी , भारद्वाज, बौधायन , हारीत, यम, पाराशर , अंगिरा , याज्ञवल्क्यादि समस्त ऋषि-मुनियों ने नाना प्रकार से प्रतिपादित किया है । इतना ही क्यों, आप इतिहास पुराणों में ही यह प्रसंग देख लीजिये , वह चाहे महाभारत हो, या फिर श्रीमद्भागवत , देवी, स्कन्द, आदि पुराण हों, सर्वत्र एक ही स्वर आपको सुनाई देगा ।
समुद्रेषु पृथिव्यां च वनस्पतिषु स्त्रीषु च ।
विभज्य ब्रह्महत्यां च तान् वरैरप्ययोजयत् ।।
(महा० उद्यो०, सेनो० ९।४४))
विभज्य ब्रह्महत्यां तु वृक्षेषु च नदीषु च ।
पर्वतेषु पृथिव्यां च स्त्रीषु चैव युधिष्ठिर ।।
(महा० उद्यो०, सेनो०१३।१९)
स्त्रीभूजलद्रुमैरेनो विश्वरूपवधोद्भवम् ।
विभक्तमनुगृह्णद्भिर्वृत्रहत्यां क्व मार्ज्यहम् ।।
(श्रीमद्भा०६।१३।०५)
उड़िया बाबा तो प्रणव संकीर्तन भी करवा लेते थे , जिस कारण करपात्री जी महाराज ने तक आपके पास आना बन्द कर दिया था ( प्रमाण - श्री अखण्डानन्द सरस्वती रचित पावन प्रसंग , सत्साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट से प्रकाशित, पृष्ठ ४१), अतः यदि कदाचित् वे रजस्वला स्त्री के हाथ का भोजन भी उचित ठहरा दें , तो इस पर भी यहॉ फेसबुक के कुछ तथाकथित भक्तों को उनसे वैमत्य न हो तो भी आश्चर्य नही ।
समदर्शी महायोगी भगवान् श्री आद्य शंकराचार्य को पक्षपाती बताने वाले उड़िया बाबा कितने उद्भट श्रोत्रिय रहे, उनके नाम पर दुराग्रह फैलाने वालों को पता चल ही रहा होगा ।
।। जय श्री राम ।।
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