Thursday, 4 April 2019

स्त्री को पापयोनि कहना उचित है?

उड़िया बाबा के नाम पर   निजी   दुराग्रह फैलाने वालों का भ्रमोच्छेदन -

कुछ लोगों द्वारा उड़िया बाबा के श्रोत्रिय होने पर  हमारा   प्रश्नचिन्ह उठाना    बहुत खटक रहा है , पर श्री आद्य शंकराचार्य भगवान् पर जो आक्षेप लगाया गया है, उस पर  उनके मुख में द ही जम गयी है।  ये वे लोग हैं,  जिनको  अपने  दुराग्रह  से इतनी   चाहत है कि स्वयं वेदवेद्य  भगवान् शंकर पर आक्षेप से  भी  कोई लेना देना नहीं ,   

उनके लिये  दर्पण -

  जब उड़िया बाबा ने बता डाला  श्री आद्य शंकराचार्य को ही पक्षपाती -

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श्री आद्य शंकराचार्य का मत  पक्षपातपूर्ण जान पड़ता है ।
- उड़िया बाबा । गीता तत्त्वालोक , पृष्ठ ३०५
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श्री आद्य शंकराचार्य के मत का खंडन करने के लिये  उक्त बाबा महाशय ने  इतना खोखला तर्क दिया  कि   पढ़कर ही हंसी आती है ,  

#कुतर्क -  स्त्री पापयोनि है तो उसके हाथ का भोजन क्यों करते हैं सभी ? जबकि स्त्री के बिना कोई यज्ञ सम्पन्न नहीं होता ।

#भंजन -    महिषादि पशुओं का दुग्धपान करने से क्या  उनका निम्नयोनित्व समाप्त हो जाता है ?   किन्तु उनके दुग्धादि  को ग्रहण करने की भी एक व्यवस्था है  कि कब ग्राह्य है,  कब नहीं ।     यज्ञ की ही बात करें तो  द्रव्य यज्ञ  तो स्थावर योनियों को प्राप्त   वृक्षादि के सहयोग के बिना भी  नहीं  पूर्ण हो पाता , तो क्या उनको  ब्राह्मणादि  के तुल्य पुण्ययोनि मान लेना चाहिये ?  तब तो   सांख्यादि शास्त्रों का प्रसिद्ध तमः प्रधान , सत्त्वप्रधान , रजःप्रधान प्राणियों का शास्त्रोक्त गुण-कर्मविभाग ही  विध्वस्त हो जायेगा । अनृत में स्त्री की स्थिति बताने वाले मन्वादि स्मृतियों का क्या कोई महत्त्व नहीं ?  विचार करना चाहिये ।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी , श्री राम चरितमानस के अरण्यकाण्ड में  महान् भगवद्भक्त श्री शबरी जी के मुख से    अधम ते अधम अधम अति नारी की जब अनुश्रुति कहलवाते  हैं , तो क्या  वहॉ पर वे शबरी जी  झूठ बोलती हैं , जिनके दर्शन के लिये स्वयं   वेदवेद्य  भगवान् श्री राम पधारते हैं ?

श्री भगवान् आद्य शंकराचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा है कि  पापा योनिः येषां ते  पापयोनयः    पापजन्मानः  , अर्थात्  जिन प्राणियों के जन्म का कारण पाप हैं , वे पापयोनयः कहलाते हैं । 

जब अपने जन्म में  पाप की प्रधानता  थी ,  तभी तो   पुरुषजन्मराहित्यता आयी ,   अन्यथा क्यों आती ?  निवृत्तिमूलक  ज्ञानमार्ग और  प्रवृत्तिमूलक  कर्ममार्ग - ये दो ही सनातन मार्ग हैं ,  जिनका गीताशास्त्र में उपदेश हुआ है , और  इन दोनों मार्गों में  क्रमशः ब्राह्मण और क्षत्रिय - ये दो पुण्ययोनियॉ ही अधिकृत हैं ।

देवराज इन्द्र ने ब्रह्महत्या का एक भाग जो स्त्रियों में बांटा था , उसी के फलस्वरूप  रजस्वला होती हैं, ( शश्वत्कामवरेणांहस्तुरीयं जगृहुः स्त्रियः । रजोरूपेण तास्वंहो मासि मासि प्रदृश्यते ।।)

और उड़िया बाबा महाशय !  कोई भी शिष्ट व्यक्ति   रजस्वला स्त्री के हाथ का  भोजन तो करता नहीं ,  ना ही यज्ञ  सम्पन्न करते हैं । 

ये सब विषय तैत्तिरीय संहिता  से लेकर बृहदारण्यरोपनिषद् पर्यन्त न केवल  वेदों में प्रसिद्ध है,   वरन् आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी , भारद्वाज, बौधायन , हारीत, यम, पाराशर , अंगिरा , याज्ञवल्क्यादि समस्त ऋषि-मुनियों ने नाना प्रकार से प्रतिपादित किया है ।  इतना ही क्यों, आप इतिहास पुराणों में ही यह प्रसंग देख लीजिये , वह चाहे महाभारत हो, या फिर  श्रीमद्भागवत , देवी, स्कन्द,  आदि पुराण हों,   सर्वत्र एक ही स्वर आपको सुनाई देगा ।

समुद्रेषु पृथिव्यां च वनस्पतिषु स्त्रीषु च ।
विभज्य ब्रह्महत्यां च तान् वरैरप्ययोजयत् ।।
(महा० उद्यो०, सेनो० ९।४४))

विभज्य ब्रह्महत्यां तु वृक्षेषु च नदीषु च ।
पर्वतेषु पृथिव्यां च स्त्रीषु चैव युधिष्ठिर ।।
(महा० उद्यो०, सेनो०१३।१९)

स्त्रीभूजलद्रुमैरेनो विश्वरूपवधोद्भवम् ।
विभक्तमनुगृह्णद्भिर्वृत्रहत्यां क्व मार्ज्यहम् ।।
(श्रीमद्भा०६।१३।०५)

  उड़िया बाबा तो प्रणव संकीर्तन भी करवा लेते थे , जिस कारण करपात्री जी महाराज ने तक आपके पास आना बन्द कर दिया था ( प्रमाण - श्री अखण्डानन्द सरस्वती रचित पावन प्रसंग ,  सत्साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट से प्रकाशित, पृष्ठ ४१), अतः यदि कदाचित् वे  रजस्वला स्त्री के हाथ का भोजन भी उचित ठहरा दें , तो इस पर भी  यहॉ फेसबुक के   कुछ तथाकथित  भक्तों को उनसे वैमत्य न हो तो भी आश्चर्य नही ।  

समदर्शी महायोगी भगवान् श्री आद्य शंकराचार्य को पक्षपाती बताने वाले  उड़िया बाबा  कितने उद्भट श्रोत्रिय रहे, उनके नाम पर दुराग्रह फैलाने वालों को   पता चल ही रहा होगा ।

।। जय श्री राम ।।

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