पापयोनित्व, पूज्यत्व और पाण्डित्य -
पापयोनयः स्त्रियः , यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, वाचक्नवी गार्गी ये तीन शास्त्रीय विषय ऐसे हैं, जिनके ठीक -ठीक अभिप्रायों व पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों को न जानने वाले स्वार्थी तत्त्वों द्वारा समाज में पर्याप्त भ्रम फैला दिये गये हैं । पापयोनि है तो पूज्या कैसे ? पण्डिता कैसे ? ये सब भ्रामक स्थिति आजकल यत्र तत्र सर्वत्र देखने को मिल रही है ।
पापयोनिः ये संस्कृत का शब्द है , इसका मतलब होता है जिसके जन्म में पूर्वजन्मकृत पाप की प्रधानता हो । ये जानना आवश्यक है कि इस संसार में जन्म लेना कर्माधारित प्रक्रिया होती है । जन्म अकारण या अकस्मात् नहीं होता , कर्म का परिणामविशेष ही जन्म होता है । इसे ही दूसरे शब्दों में कहें तो प्राणियों का जन्म उनके पूर्वकृत पुण्य पापों के फलस्वरूप ही होता है ।
इसलिये पापयोनि शब्द पर स्वयं को अनावश्यक भ्रान्तियों में डालने के स्थान पर, विषय की वस्तुस्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिये ।
सम्मान और जन्म -------
यत्र नार्यस्तु ० ये विवाहिता स्त्री के प्रसंग में मनु ने लिखा है , यहॉ पर केवल इतना भाव है कि नववधू का ससुराल में सम्मान करना चाहिये , तभी उन कुलों की सम्यक् उन्नति होती है । स्त्रियॉ पापयोनि नहीं होती, ऐसा नहीं बोला गया है वहॉ । ये वही मनु हैं, जो प्राणियों के जन्मादि विषयक सृष्टिप्रक्रिया के गुणविभाग और कर्मविभाग को ही जानकर निरिन्द्रिया ह्यमन्त्राश्च स्त्रीभ्योऽनृतं इति स्थितिः के रहस्य भी बताये हैं । आर्ष-शास्त्रोक्त कोई भी कथन निरर्थक , निष्प्रयोजन या अकर्तव्य नहीं हुआ करता । इसीलिये अपरिपक्व मति वाले लोकसामान्य की व्यर्थ भावनाऐं भड़का कर शास्त्रीय सिद्धान्त को विकृत करने की विनाशकारी और उत्पातकारी दुष्प्रवृत्ति से बचना चाहिये । पापयोनित्व तो जीव के प्रारब्ध को लेकर होता है , और पूजन -सम्मान ये आचार का विषय है ।
अतः किसी प्राणी का पापयोनि होना और सम्मानित होना दो पृथक् पृथक् विषय हैं । हमारी आपकी माताऐं , बहनें ये सभी हमारी आपकी माताबहनें बाद में हैं, कर्मचक्र में पड़े हुए जीव पहले हैं । इसे समझना होगा । हम आप भी पहले कर्मचक्र में पड़े हुए जीव हैं , तब किसी के पुत्र या भाई आदि हैं । अतः पापयोनि होने को लोहे की हथकड़ी समझिये और पुण्ययोनि होने को सोने की हथकड़ी । आखिर हथकड़ी तो दोनों ही हथकड़ी ही हैं , हथकड़ी पहनने से सम्मान नहीं होता , वरन् कभी हमें हथकड़ी ना पहननी पड़े, ये है सम्मान की बात । इसलिये किसी के अधिकार हनन की बात यहॉ नहीं है , वरन् सृष्टि नियमों को समझने की आवश्यकता है ।
जब पापयोनि कौवों को तक हम लोग सम्मान करके श्रद्धापूर्वक भोजन प्रदान करते हैं , उनके खाने पर पितरों की संन्तुष्टि समझते हैं , तो पापयोनि स्त्री को सम्मान कर दिये तो क्या समस्या हो गयी ?
कागभुशुण्डी जी कौए की योनि में लोमश ऋषि के शाप से पैदा हुए , पर पंडित थे , ऐसे ही गार्गी आदि के ब्रह्मवादिनी होने के सन्दर्भ में भी समझना चाहिए , कि वे पापयोनि प्रधान जाति में पैदा होकर भी पण्डिता हुईं , उसी बृहदारण्यकोपनिषद् में तो गर्भाधान संस्कार की पूरी एक विधि ही बताई गयी है कि आपकी पुत्री पण्डिता कैसे बन सकती है । इसलिये किसी स्त्री का विदुषी होना तो उसके पूर्व संस्कारविशेष का परिणामभर है , इससे प्रकृति का वह कर्मचक्र का नियम नहीं बदलता, जिसके फलस्वरूप ब्राह्मणादि पुण्ययोनियॉ अथवा स्त्री आदि पापयोनियॉ जीवों को प्राप्त होती हैं ।
।। जय श्री राम ।।
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