Friday, 5 April 2019

पापयोनि पर भ्रान्ति निवारण

पापयोनित्व,  पूज्यत्व   और   पाण्डित्य  -

  पापयोनयः स्त्रियः ,  यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, वाचक्नवी गार्गी     ये तीन    शास्त्रीय विषय ऐसे हैं, जिनके ठीक -ठीक  अभिप्रायों व पारस्परिक  अन्तर्सम्बन्धों को न जानने  वाले स्वार्थी तत्त्वों द्वारा समाज में पर्याप्त भ्रम फैला दिये गये हैं ।   पापयोनि  है तो  पूज्या  कैसे ?  पण्डिता कैसे ?   ये सब   भ्रामक   स्थिति  आजकल  यत्र तत्र  सर्वत्र  देखने को मिल रही है ।

पापयोनिः  ये संस्कृत का शब्द है , इसका मतलब होता है  जिसके जन्म में   पूर्वजन्मकृत  पाप  की प्रधानता हो ।   ये जानना    आवश्यक है कि   इस संसार में  जन्म लेना कर्माधारित  प्रक्रिया होती है ।  जन्म अकारण या अकस्मात् नहीं होता , कर्म का परिणामविशेष ही जन्म होता है । इसे ही दूसरे शब्दों में कहें तो     प्राणियों का जन्म उनके पूर्वकृत पुण्य पापों के फलस्वरूप ही  होता है ।

इसलिये पापयोनि शब्द  पर     स्वयं को  अनावश्यक भ्रान्तियों में डालने के स्थान पर,  विषय की  वस्तुस्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिये ।

सम्मान और  जन्म -------

यत्र नार्यस्तु ०   ये  विवाहिता स्त्री के प्रसंग में मनु ने लिखा है ,  यहॉ पर केवल इतना भाव है कि  नववधू का    ससुराल में सम्मान करना चाहिये , तभी  उन  कुलों की   सम्यक् उन्नति होती है ।  स्त्रियॉ पापयोनि   नहीं होती,  ऐसा नहीं बोला गया  है वहॉ  ।   ये  वही मनु हैं,  जो  प्राणियों के जन्मादि विषयक   सृष्टिप्रक्रिया के  गुणविभाग और कर्मविभाग को  ही जानकर   निरिन्द्रिया ह्यमन्त्राश्च स्त्रीभ्योऽनृतं इति स्थितिः  के रहस्य  भी  बताये हैं ।       आर्ष-शास्त्रोक्त कोई भी  कथन  निरर्थक , निष्प्रयोजन  या अकर्तव्य नहीं हुआ करता ।  इसीलिये      अपरिपक्व  मति वाले  लोकसामान्य    की  व्यर्थ  भावनाऐं भड़का कर शास्त्रीय सिद्धान्त  को  विकृत करने की   विनाशकारी और उत्पातकारी   दुष्प्रवृत्ति से बचना चाहिये ।  पापयोनित्व तो  जीव के  प्रारब्ध को लेकर  होता  है ,   और  पूजन -सम्मान ये  आचार का विषय है  ।

   अतः  किसी प्राणी का पापयोनि  होना और सम्मानित होना दो पृथक् पृथक् विषय हैं ।    हमारी आपकी  माताऐं , बहनें  ये सभी    हमारी आपकी माताबहनें बाद में हैं,   कर्मचक्र  में पड़े हुए जीव  पहले हैं ।  इसे समझना होगा ।  हम आप भी  पहले  कर्मचक्र में पड़े हुए जीव हैं , तब किसी के  पुत्र या भाई आदि  हैं ।  अतः पापयोनि होने को  लोहे की  हथकड़ी समझिये और पुण्ययोनि  होने को सोने की हथकड़ी । आखिर  हथकड़ी तो दोनों ही   हथकड़ी  ही  हैं ,  हथकड़ी  पहनने  से सम्मान नहीं होता , वरन्  कभी हमें   हथकड़ी   ना पहननी  पड़े, ये है सम्मान की बात ।  इसलिये किसी  के अधिकार हनन की बात यहॉ नहीं है , वरन्   सृष्टि नियमों को समझने की आवश्यकता है ।

जब पापयोनि कौवों को तक  हम लोग    सम्मान करके  श्रद्धापूर्वक  भोजन   प्रदान करते हैं ,   उनके खाने पर पितरों की  संन्तुष्टि   समझते हैं ,   तो     पापयोनि स्त्री को  सम्मान कर दिये तो क्या  समस्या हो गयी ? 

कागभुशुण्डी जी कौए की योनि में  लोमश  ऋषि के शाप से पैदा हुए ,  पर पंडित थे , ऐसे ही गार्गी आदि के ब्रह्मवादिनी होने के सन्दर्भ  में भी समझना चाहिए , कि वे पापयोनि प्रधान जाति में पैदा होकर भी पण्डिता हुईं , उसी  बृहदारण्यकोपनिषद् में तो   गर्भाधान संस्कार की  पूरी एक विधि ही बताई गयी  है कि  आपकी पुत्री पण्डिता कैसे बन सकती है । इसलिये  किसी स्त्री का विदुषी होना  तो  उसके पूर्व संस्कारविशेष    का परिणामभर है ,   इससे प्रकृति का  वह कर्मचक्र का  नियम नहीं बदलता, जिसके फलस्वरूप   ब्राह्मणादि  पुण्ययोनियॉ अथवा स्त्री आदि  पापयोनियॉ   जीवों को प्राप्त होती हैं ।

।। जय श्री राम ।।

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