Thursday, 17 January 2019

पवित्रता_किसे_कहते_हैं

#पवित्रता_किसे_कहते_हैं?

इसका उत्तर महर्षि वेदव्यास ने निम्न प्रकार से दिया है -
ब्रह्मचर्यं तपः क्षान्तिर्मधु मांसस्य वर्जनम्।
मर्यादायां स्थितिश्चैव शमः शौचस्य लक्षणम्।।A
आगे कहते हैं-
मनःशौचं कर्मशौचं कुलशौचं च भारत।
शरीरशौचं वाक्-शौचं शौचं पञ्च विधः स्मृतम्।।R

धर्म के लक्षणों में पांचवाँ लक्षण शौच (शुचि) अर्थात् पवित्रता है-
१. मन की पवित्रता,२. कार्य की पवित्रता, ३. कुल की पवित्रता, ४. शरीर की पवित्रता और ५. वाणी की पवित्रता, अर्थात् जो इन पाँचों दृष्टियों से पवित्र है, उसी को वास्तविकता में पवित्र माना जा सकता है। उपरोक्त पाँच शुद्धियों में -
पञ्चस्वेतेषु शौचेषु हृदि शौचं विशिष्यते।
मन की पवित्रता सर्वश्रेष्ठ भी है और आवश्यक भी क्योंकि-
हृदयस्य तु शौचेन स्वर्गं गच्छन्ति मानवाः।
के अनुसार मन की पवित्रता से ही मनुष्य स्वर्ग जैसा जीवन प्राप्त करता है।

#मनु_ने_धन_की_पवित्रता_को_सर्वोपरि_माना_है -

सर्वेषामेव शौचानां अर्थशौचं परं स्मृतम्।
क्योंकि
योऽर्थे शुचिर्हि स शुचिर्न मृद्वारि शुचिः शुचिः।
के अनुसार जो धन के मामले में पवित्र है, वही पवित्र है। जो केवल मिट्टी व जल से पवित्र है वह पवित्र नहीं है। पवित्रता व शुद्धि के संबंध में चाणक्य कहते हैं -
वाचः शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
सर्वभूते दयाशौचं एतच्छौचं पराऽर्थिनाम्।।

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
#प्रश्न_नही_स्वाध्याय_करें!!

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