//#वसुधैव_कुटुम्बकम् -सारी धरती अपना घर है, कहीं भी घूमो //
#उत्तर - पहली बात तो कुटुम्ब शब्द का अर्थ घर नहीं है , दूसरी बात ये कि ये जो आपने कहा //कहीं भी घूमो // ये आपने अपनी जेब से जोड़ा है, मूल श्रुति में ऐसा कहीं भी नहीं कहा गया है । वहॉ पर तो मात्र इतना ही कहा गया है कि वसुधैव कुटुम्बकम् । ( अयं बन्धुरयं नेति .....कुटुम्बकम् )
जिस स्थल का यह वचन है, वहॉ प्रकरण पता करो आप पहले , एक अद्वैतात्मनिष्ठ संन्यासी ब्राह्मण की उदार दृष्टि का यह प्रकरण है , उदार दृष्टि का अभिप्राय यहॉ आत्मदृष्टि से है ।
जिस स्थल का यह वचन है , स्पष्ट कहा है श्रुति ने वहीं आगे - #उदारः_पेशलाचारः_सर्वाचारानुवृत्तिमान् । अतः तुम कलिसन्तानों के विदेशों में मौज लूटने का बीजा नहीं है ये !
श्रुति ने तो स्पष्ट कहा है - #न_जनमियात्_नान्तमियात् अर्थात् समुद्रोल्लंघन करके भारत से बाहर विदेश न जाये ।
ऐसे में तुम महाधूर्त्त केवल धर्म के नाम पर पाखण्ड करना चाहते हो - ये स्पष्ट है ।
।। जय श्री राम ।।
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