देवता हों या असुर : सभी भक्तों के आराध्य हैं शंकराचार्य -
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#शंकराचार्य सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के परमाचार्य होते हैं । शासकों पर शासन करने वाला पद है : शंकराचार्य पद ।।
शंकराचार्य का अभिप्राय होता है : स्वयं देवाधिदेव महादेव भगवान् शिव के ज्ञानावतार ।।
देवाधिदेव महादेव भगवान् शंकर किसके वन्दनीय नहीं हैं ? अर्थात् वे सबके लिये पूज्य हैं । ऋषि, मुनि, नर, नाग, यक्ष, सुर, गन्धर्व, असुर, राक्षस आदि समस्त प्राणियों के लिये भगवान् शंकर सदैव वन्दनीय हैं ।
जगद्गुरु शंकराचार्य की चरण रज प्राप्त करना कौन नहीं चाहता । देवता हों या असुर - सबका कल्याण करने वाले होने से ही तो वे शंकर हैं ।
जिनके चरणों की धूल सिर पर धारण करने से वैष्णव अपनी वैष्णवता को सार्थक करते हैं , उन सर्ववैष्णवाधिराज (वैष्णवानां यथा शम्भुः) भगवान् शंकर की हम सभी सनातन हिन्दू धर्मावलम्बी वन्दना करते हैं ।
समस्त विश्व को केवल चार दिशाओं के चार शंकराचार्य मात्र नियोजित कर सकने में पूर्णतः समर्थ हैं ,
इसी रहस्य को जानने वाले परब्रह्मस्वरूप भगवान् शंकर ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व चार पीठों की समुद्भावना की ।
एक तरह से ये भगवान् शंकर ही चार रूपों में उस समय प्रकट हो गये थे ।
अतः समस्त सनातन हिन्दू धर्मावलम्बियों को उन चार शंकराचार्यों की शरण में रहना चाहिये । इसी में उनका कल्याण है ।
।। जय श्री राम ।।
।। जय श्री राम ।।
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