Tuesday, 25 September 2018

माता पिता के श्राप से पुत्रहानि

[9/25, 3:46 PM] ‪+91 85113 29848‬: पितृशापात् पुत्रहिनता

(१) पाँचवे स्थान में तुला का सूर्य - शनि के नवांश में और पापकर्तरी में हो
(२) पञ्चमेश सूर्य पापयुक्त होकर त्रिकोण में रहकर पापकर्तरीयोग में हो पापदृष्ट हो
(३) सिंहस्थ गुरु, पञ्चमेश सूर्ययुक्त, पञ्चम तथा लग्नभाव सपाप हो (केवल वृषभ लग्न में)..
(४) दुर्बल लग्नेश पञ्चमभाव में , पञ्चमेश मंगलयुक्त तथा पञ्चमभाव और लग्न ये दोनों सपाप हो
(५)दशमेश पञ्चमस्थान में अथवा पञ्चमेश दशवें स्थान में हो और लग्न एवं पञ्चमभाव सपाप हो
(६)दशमेश मंगल पञ्चमेश के साथ हो ,लग्न और पञ्चम तथा दशमस्थान में पापग्रह हो (केवल कुम्भ और कर्क लग्न में)
(७) दशमेश ६-८-१२ स्थ हो पुत्रकारक गुरु या पञ्चमेश पापराशिस्थ हो और लग्नेश एवं पञ्चमेश सपाप हो
(८) लग्न और पञ्चम भाव में सूर्य, मंगल तथा शनि हो और लग्नेश एवं पञ्चमेश सपाप हो ( सूर्यादि उक्त ग्रहों की अंशादि से दूरी या समिपता दैखनी चाहिये)
(९) अष्टमस्थ सूर्य, पञ्चमस्थ शनि, पञ्चमेश राहुयुक्त तथा लग्न सपाप हो
(१०) व्ययेश लग्न में, अष्टमेश पञ्चम में और दशमेश अष्टम स्थान में हो
(११)षष्ठेश पञ्चम में , दशमेश षष्ठ में और पुत्रकारक गुरु या पञ्चमेश सराहु हो
============बृह०परा०हो०७४/२१-३१======

उपाय ---- (१)गयाश्राद्ध, (२)हजार या दशहजार ब्राह्मण भोजन (कलियुग में पात्रता दैखतें हुएँ सम्भव नहीं),(३) कन्यादान (कलियुग में जो शास्त्र की मर्यादा रखकर कन्याकालोचित समय में दान करें तो)सवत्साधेनु दान -- तीनों में से जो सम्भव हो
पुराणमाहात्य के अनुसार प्रायश्चित्तपूर्वक सयमनियम का पालन करतें हुएँ श्रीमद्भागवत सप्ताह पारायण मूलमात्र किसी स्वशाखीयवेद से संस्कृत हुएँ पाठक से करवायें।
=======तत्रैव ३२-३४====
[9/25, 4:14 PM] ‪+91 85113 29848‬: मातृशापात् सुतक्षय

(१) पञ्चमेश चन्द्र वृश्चिक का हो या पापकर्तरी में हो और चतुर्थ पञ्चम भावों सपाप हो(केवल मेष लग्न में)
(२) एकादश में शनि, चतुर्थ सपाप और नीच का चन्द्र पञ्चमस्थ हो (केवल सिंह लग्न में)
(३) पञ्चमेश त्रिकस्थ (६-८-१२), लग्नेश नीचराशि में, चन्द्र सपाप हो
(४) पञ्चमेश त्रिकस्थ, चन्द्र पापग्रह के नवाँश में और लग्न तथा पञ्चम सपाप हो
(५) पञ्चमेश चन्द्र यदि शनि राहु मंगल के साथ नवम या पञ्चम में हो (केवल मेष लग्न में )
(६) सुखेश मंगल शनि-राहु युक्त हो और लग्न तथा पञ्चम में रवि-चन्द्र हो (केवल सिंह और मकर लग्नों में)
(७)लग्नेश तथा पञ्चमेश षष्ठस्थ हो चतुर्थे अष्टमस्थ हो और अष्टमेश तथा दशमेश लग्न में हो
(८) षष्ठेश और अष्टमेश लग्न में, चतुर्थे व्ययस्थ, सपाप गुरु-चन्द्र पञ्चम में हो
(९) लग्न पापकर्तरी में हो, (क्षीणचन्द्र कृष्णपक्ष षष्ठी से शुक्लपक्ष पञ्चमीतक) का सप्तम में और राहु ,शनि क्रमशः चतुर्थ पञ्चम स्थान में हो
(१०) अष्टमेश पञ्चम में, पञ्चमेश अष्टम में हो और चन्द्र तथा सुखेश ६-८-१२ में कहीं भी हो
(११)कर्क लग्न में मंगल राहु रहे और चन्द्र तथा शनि पञ्चमस्थ हो (मंगल राहु के अंशादि से सामिप्यता और दूरी दैखे)
(१२)लग्न, पञ्चम,अष्टम तथा द्वादश में मंगल, राहु,सूर्य और शनि हो, चतुर्थे एवं लग्नेश ६-८-१२ में से किसी भी स्थान में हो ( बारहवें स्थानस्थ ग्रहों की अंशादि से सामीप्यता और दूरी देखनी चाहिये)
(१३) गुरु अष्टम में मंगल राहु से युक्त (अंशादि से दैखे), पञ्चम में शनि चन्द्र (अंशादि दैखे) हो
=========बृह०पारा०हो०७४/३५-४८====
उपाय - विधिपूर्वक समुद्रस्नान , यथाधिकार रक्ष गायत्री जप, ग्रहदान-ब्राह्मणभोजन, पिप्पल की १००८ प्रदक्षिणा इन्हों में से  यथासम्भव उपाय
---- मातृगयाश्राद्ध के माहात्म्य के कारण मातृगया श्राद्ध करें ---  श्रीमद्भागवत मूल पारायण मोक्षसूचक मुर्हूतों में।

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