मनुष्य के स्वाभाविक ज्ञान में नैमित्तिक ज्ञान के सहयोग के बिना कोई उन्नति नहीं होती है ।
चिरकाल से समुन्नत जातियों के संसर्ग से दूर रहने के कारण, आज भी पशु-जीवन बिताने वाली जङ्गली जातियॉ इस बात का प्रत्यक्ष साक्ष्य दे रही हैं ।
अतः मनुष्य आरम्भ में पशु समान था, शनैः शनैः उसके ज्ञान का विकास हुआ - यह घोर भ्रान्त धारणा मात्र है ।
।। जय श्री राम ।।
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