क्रान्तिवीर चलचित्र ( फिल्म) से प्रसारित तर्क के दुष्प्रचार का खण्डन -
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काटो तो खून सबका लाल है , फिर हिन्दू धर्म में जातिभेद कैसे ?
#उत्तर - शास्त्रोक्त जातिभेद रक्त के वर्ण पर नहीं वरन् प्राणी के प्रारब्धकर्म पर आधारित होता है ।
अन्यथा रक्त तो मनुष्य ही नहीं, वरन् पशु-पक्षियों का भी लाल ही होता है ।
प्रारब्ध कर्म क्या होता है ?
किसी प्राणी का सृष्टिसंचालक ईश्वर द्वारा फलोन्मुख किया गया वह संचित कर्म विशेष , जो अपनी क्रिमाणावस्था को भूतकाल में पूर्ण कर चुका हो, उसे प्रारब्ध कर्म कहते हैं ।
प्रश्न - जो जन्म से वर्ण व्यवस्था को नहीं मानते उनके कौन से कर्म या प्रारब्ध होते हैं???
उत्तर - मानना न मानना तो व्यक्ति के निज विवेक पर आश्रित होता है किन्तु वर्णव्यवस्था - यह एक सृष्टि प्रक्रिया है, एक विज्ञान है ।
व्यक्ति की निजी मान्यता का सृष्टि के नैसर्गिक विज्ञान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
वर्णव्यवस्था सात्विक, राजसिक और तामसिक -इन तीन नैसर्गिक गुणों के सम्मिश्रण पर आधारित होती है । इसे सविस्तार से समझने के लिये आपको विस्तृत समय निकालकर अधिकृत गुरु के सान्निध्य में सत्संग(अध्ययनादि) करना चाहिये ।
प्रश्न- आचार्य शिवव्रत जी,
इसमें अवैदिक जन्मना वर्णाश्रम धर्म की चर्चा तो है लेकिन "शास्त्रोक्त जातिभेद" क्या है ??
यह नहीं है।
मैं जिज्ञासु यह जानना चाहता हूँ की किस शास्त्र में वर्तमान जातिव्यवस्था ( ठाकुर तेली कुम्हार बामन अग्रवाल) आदि का उल्लेख है???
उत्तर - शास्त्र के अनुसार वर्ण अर्थात् जातियॉ चार हैं , ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र ।
इन चार वर्णों में पारस्परिक जाति सांकर्य से अवान्तर जातियों की सृष्टि होती है ।
इसे मौलिक रूप से समझने हेतु, मनु, याज्ञवल्क्यादि ऋषि-मुनियों की स्मृतियॉ प्रमाण हैं , समस्त पुराणों , महाभारत आदि में भी यत्र तत्र सर्वत्र विकीर्ण रूप से वर्णन है तथा गहनता से समझने के लिये आपको शिष्ट परम्पराचार्यों का सान्निध्य लेना चाहिये ।
।। जय श्री राम ।।
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