#शंका - क्या कन्या को भगाकर, फिर से विधिवत् विवाह करना उचित है ?
#समाधान - हां उचित है | क्योंकि विवाहहोम, सप्तपदी आदि विवाहांगभूत क्रियाओं के विना कन्या में भार्यात्व, पत्नीत्व आदि धर्म प्रकट नहीं होता है | #आचार_प्रभवो_धर्म: 👈 इस शास्त्रवचन का यही मर्म है |
अपि च भार्यात्व आदि धर्मोंद्भव विना कन्या का पति के साथ होम, यज्ञ आदि शास्त्रीय कर्मों में अञ्चलग्रन्थि बान्धकर वाम अथवा दक्षिण में बैठने का अधिकार नहीं होता |
उससे उत्पन्न सन्तान की सहोढ संज्ञा होती है इसे भी शास्त्रीय उदकक्रिया, पिण्डदान आदि का अधिकार नहीं होता |
लाजाहोमादि मात्र से भीे विवाह सम्पन्न नहीं माना जाता फिर कोर्टमैरिज़ आदि की तो क्या कथा !
#भ्रम - "भगाकर फिर से व्याह करना " यह हमारा रीबाज़ नहीं है |
#भ्रमोच्छेद - तुम्हारा शास्त्रविरूद्ध लोकाचार प्रमाण नहीं होता | तुम जैसे पाखण्डीयों के कारण ही लोग संस्कारहीन होकर समूल नष्ट होतें है | इस पर भी तुम्हारा अपने को काशी के ब्राह्मण कहना कोई आश्चर्य नहीं है |
नोट - लेख द्वारा हम किसी को भागने के लिए प्रेरित नहीं कर रहे है पर विधिवत् विवाह के लिए प्रेरणा दे रहे है |
जय श्री राम
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