जड़ मूर्ति में अज्ञान से चेतन परमात्मा का आरोप नहीं, वस्तुतः सर्वव्यापी ईश्वरचैतन्य में ही अज्ञान से परिच्छिन्नत्व, जड़त्व, मृन्मयत्व इत्यादि का आरोप होता है ; इसलिए मूर्ति की पूजा होती ही नहीं, ईश्वर की ही पूजा होती है सर्वत्र ; फिर भी कहे कि मूर्ति को ईश्वर मानना भ्रम है तो जैसे #विसंवादी_भ्रम में मणि की प्रभा को भ्रम से मणि समझकर अंत में मणि की प्राप्ति होती है , वैसे यहाँ भी मृन्मय मूर्ति को ईश्वर मानकर पूजा करने से चिन्मय ईश्वर का बोध होना संभव हैं
Tuesday, 17 July 2018
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पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए
शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः । प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...
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जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते। वेदपाठाद् भवेद् विप्रः ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः।। इसके आधार पर यदि आप इसका ये अर्थ करतें हैं क...
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रामपाल तो सामने आने से रहा , तथापि रामपाल के कथित चेलों के माध्यमेन इसे सामने ( लाइन हाजिर ) लाकर इसकी पोल खोली जा रही है , य...
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