Tuesday, 5 June 2018

नक्षत्र और रोग-


1.अश्विनी- सिर में चोट, घाव, वात शूल, मूर्छा, मस्तिष्क में रक्त संचय, मिर्गी, आधा सीसी का दर्द पक्षाघात, मस्तिष्क ज्वर, मस्तिष्कीय रक्तस्राव आत्मविस्मृति अनिद्रा, मलेरिया, चेचक।

2.भरणी- सिर या मस्तक पर नेत्रों के निकट चोट, रतिरोग, सूजाक, चर्मरोग, ठंड, कंपन, ज्वर, गर्मी से चेहरा व दृष्टि प्रभावित।

3.(अ) कृत्तिका- 1चरण रोग- तीव्र ज्वर, मलेरिया, प्लेग, चेचक, खसरा,मस्तिष्क ज्वर, दुर्घटना, घाव, चोट, अग्नि, दुर्घटना, फाइलेरिया, विस्फोट से दुर्घटना।

(ब) कृत्तिका- 2,3,4 चरण रोग- मुहांसे, चोट, रक्तनेत्र, नेत्रसूजन (आंखे आना), गले के रोग टांसिल बढ़ना, गर्दन में सूजन व अकड़न, नाक में पाॅली पस, फोड़े, फुंसी, चक्कर आना, घुटने में ट्यूमर।

4. रोहिणी- गले सूजन, घेघा, शीतज्वर, ठंड, कफ, ज्वर, पैरों में दर्द, सिर में दर्द, छाती में दर्द, स्त्रियों के मासिक धर्म में अनियमित,सूजन, कुक्षिशूल, रक्त स्राव।

5.(अ) मृगशिरा- 1,2 चरण रोग- मुहांसे, चेहरे पर चोट, गले में सूजन, दर्द, गलफेड़े, कान के पीछे गांठे, नाक में पाॅलीपस, गलघोंटू, रतिरोग, खांसी-जुकाम, कब्ज, मल-मूत्रावरोध।

(ब) मृगशिरा- 1,2,4 चरण रोग- रक्त दोष, खुजली, साइटिका, भुजाओं में घाव या फ्रैक्चर, कंधो में दर्द,गुप्तांगों में रोग, हृदय की
6. आद्र्रा- गले में खराबी, गलफेड़े, दमा, सूूखी खांसी, गलघोटू, श्वांस के रोग, कान के रोग।

7.(अ) पुनर्वसु- 1,2,3 चरण रोग- निमोनिया, फ्लूरोसी, कान में सूजन व दर्द, फेफड़ों में कष्ट, घेघा, क्षय रोग, रक्तविकार, कमर दर्द, सिरदर्द, ज्वर, ब्रोंकाइटिस, हृदय की बाहरी झिल्ली की सूजन।

(ब) पुनर्वसु- 4 चरण रोग- क्षयरोग, निमोनिया, कफ-कास, रक्तविकार, बेरी-बेरी, जलशोथ, आमाशय मंे सूजन, अनियमित भूख, श्वास नली मे सूजन, पीलिया।

8. पुष्य- क्षय, कैंसर, पीलिया, पायरिया, गजचर्म (एग्जीमा), स्कर्वी, मितली, आमाशय में छाले, श्वास नलिका में घाव, पित्ताशय में पथरी।

9. अश्लेषा- वात रोग, श्वास विकार, जलशोथ, अपच, पीलिया, घबराहट, उन्माद, स्नायु दौर्बल्य, कफज रोग, उदर विकार, गुर्दों की सूजन, घुटनों व पैरों में दर्द।

10. मघा- हृदयाघात, पीठ दर्द, मेरुरज्जु की झिल्ली में सूजन, हैजा, दिल का ज्यादा धड़कना, मूच्र्छा, किडनी में पथरी, त्रिदोषों में असंतुलन, मानसिक रोग।

11. पूर्वाफाल्गुनी- गर्भपात, हृदय में सूजन, हृदय रोग, वाल्व में खराबी, मेरुदंड में बल पड़ना, रक्ताल्पता, रक्तचाप, नाड़ीदोष, टांगो में दर्द,टखने में सूजन।

12.(अ)उत्तराफाल्गुनी -1 चरण रोग- पीठ व सिर में दर्द, वात-विकार, प्लेग, खसरा, रक्तचाप, मोतीझारा, मूच्र्छा, मानसिक रोग।

(ब)  उत्तराफाल्गुनी- 2,3,4 चरण रोग- आंत्रशोथ, आमाशय के रोग, गले व गर्दन में सूजन और दर्द, यकृत विकार,  ज्वर।

13. हस्त- गैस बनना, पेट दर्द, आंत्रशोथ, मंदाग्नि, अफरा, हैजा, आंतज्वर, पेचिश, श्वास रोग, आंतों में कीड़े, स्नायुशूल,उन्माद।

14.(अ) चित्रा- 1,2 चरण रोग- पेट में घाव, तीव्रदर्द, कीड़े, पेट में खुजली, टांगों में दर्द, कीड़ों, सर्पों व जंगली जानवरों के काटने से घाव, हैजा, मूलविकार, पथरी।

(ब) चित्रा- 3,4, चरण रोग- गुर्दे व ब्लैडर में सूजन, बहुमूत्र रोग, पथरी, सिरदर्द, मस्तिष्क ज्वर, कमर दर्द, लू लगना।

15. स्वाति- मूत्ररोग, मूत्रनली में छाले या मवाद,चर्मरोग, कोढ़, श्वेत दाग, बहुमूत्र रोग, गुर्दों के रोग।

16.(अ) विशाखा- 1,2,3 चरणरोग- गर्भाशय डायबिटीज, बेहोशी, गुर्दे के रोग, इंसुलिन की कमी, चक्कर आना।

16.(ब) विशाखा- 4 चरण रोग- गर्भाशय के रोग, प्रोस्टेट वृद्धि, मूत्ररोग, अधिक रक्तस्राव, गुर्दे में पथरी, घाव व मवाद, जलोदर।

17. अनुराधा- मासिक धर्म में अनियमितता एवं रक्तस्राव में रुकावट, दर्द, बंध्यत्व, कब्ज, सूखी बवासीर, कूल्हे की हड्डी काफेक्चर, गले में दर्द, कफ, नजला।

18. ज्येष्ठा- श्वेतप्रदर, खूनी बवासीर, रतिरोग, प्रजननांग संबंधी रोग, भुजाओं व कंधों में दर्द, ट्यूमर।

19. मूल- कटिवात, गठिया, कमरदर्द, श्वास रोग, निम्न रक्तचाप, मतिभ्रम।

20. पूर्वाषाढ़ा- गठिया, कटिवात, साइटिका, मधुमेह, प्रमेह, अफारा, फेफड़ों में कैंसर, श्वास रोग, घुटनों में सूजन, शीत प्रकोप, रक्त विकार, धातुक्षय।

21.(अ) उत्तराषाढ़ा- 1 चरण रोग- साइटिका, गठिया, कमरदर्द, पक्षाघात, उदरदर्द, चर्मरोग, नेत्ररोग, श्वसन संबंधी रोग।

(ब) उत्तराषाढ़ा- 2,3,4 चरण रोग- गैस, एग्जीमा, चर्म रोग, कोढ़, श्वेत कुष्ठ,गठिया, हृदयरोग, अनियमित धड़कन, पाचन असंतुलन।

22. श्रवण- गजचर्म (एग्जीमा) रोग, कोढ़ फोड़े, गठिया, क्षयरोग, फ्लूरोसी, अतिसार,संग्रहणी, अपच, फाइलेरिया।

23.(अ) धनिष्ठा- 1,2 चरण रोग- पैरों में चोट, अपंगता, फोड़े ,हिचकी, मितली, सूखी खांसी।

(ब) धनिष्ठा- 3,4 चरण रोग- टांगों में फ्रैक्चर, रक्तविकार, रक्तोष्णता, धड़कन में अनियमितता, मूच्र्छा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, स्नायु गुच्छ रोग।

24. शतभिषा- टांग में फ्रैक्चर, अपंगता, गठिया, हृदय रोग, गजचर्म (एग्जीमा),कोढ़, उच्च रक्तचाप।

25.(अ) पूर्वाभाद्रपद- 1,2,3 चरण रोग- निम्न रक्तचाप, टखनों में सूजन, दिल का आकार बढ़ जाना, जलशोथ।

(ब) पूर्वाभाद्रपद- 4 चरण रोग- पैरों में सूजन, पैरों में गांठे, लीवर वृद्धि, आंतरोग, हर्निया, पीलिया, अतिसार।

26. उत्तराभाद्रपद- गठिया, पैर में फ्रैक्चर, अपच, कब्ज, हर्निया, जलोदर, क्षयरोग, उदरवात।

27. रेवती- पैरों में ऐंठन व दर्द, पैरों की विकृति, आंतों में छाले, बहरापन, कानों में मवाद, गुर्द मे सूजन, थकान

No comments:

Post a Comment

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...