Thursday, 14 June 2018

वैदिक सनातन वर्णाश्रमधर्मानुयायियाें में अाैर अार्यसमाजियाें मे महत्त्वपूर्ण प्रमुख भेद ।

शिवराज आचार्य कौण्डिन्यायन के अनुसार ---

वैदिक सनातन वर्णाश्रमधर्मानुयायियाें में अाैर अार्यसमाजियाें मे महत्त्वपूर्ण प्रमुख भेद ।

सनातनियाें के लिए
तस्माच् छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थिताै ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानाेक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।(गीता १६।२४) ।
यह वचन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।
  अाजकल   अत्यधिक सङ्ख्या में मिलने वाले  भाेगवादी देहात्मवादी लाेग ताे  सनातनियाें के मूल शास्त्र वेद का ही विराेध करदेते हैं । इसीप्रकार से  दयानन्द  भी  वैदिक सनातन जन्मना जातिवादी वर्णाश्रमधर्म का विराेध करके प्रकारान्तर  से वेदका ही विराेध कर देता है ।   

अार्यसमाज का संस्थापक  दयानन्द ने  भी अाश्वलायनशाखा शाङ्खायनशाखा के ऋग्वेद काे, तैत्तिरीयशाखा मैत्रायणीयशाखा के कृष्णयजुर्वेद काे, जैमिनीयशाखा के सामवेद काे, पैप्पलादशाखा के अथर्ववेद काे परतःप्रमाण कहकर वस्तुतः वेद ही नहीं माना ।
  ब्राह्मणग्रन्थाें  काे श्राैतसूत्राें काे गृह्यसूत्राें काे भी न मान कर
पञ्चमहायज्ञविधि संस्कारविधि बनाकर उन का भी वस्तुतः विराेध ही किया ।

क्या इसी से उक्त  सभी ग्रन्थ वेद के रूप में अमान्य अाैर त्याज्य हाेंगे?

  सनातनियाें की परम्परागत मान्यता है कि
     
विध्यर्थवादमन्त्रेतिकर्तव्यं ब्राह्मणादिभिः।
कल्पसूत्रैकपठितं कर्म प्रामाण्यमृच्छति।।
यत्रकुत्रस्थितं  वेदवाक्यं संगृह्य केवलम् ।
अस्य वाक्यस्यायमर्थ इति वक्ताज्ञ उच्यते ।।
(लाैगाक्षिस्मृति, स्मृतिसन्दर्भ, षष्ठभाग, पृष्ठ४०५,४०६)  ।

इस दृष्टि से  अज्ञ मानेजाने वाले दयानन्द के वेदमन्त्राें के अर्थ सनातनियाें काे सर्वथा अमान्य हैं ।

दयानन्द ने वैदिक सनातनी परम्परा के सभी ग्रन्थाें में मनमाना प्रक्षेपादि का अाराेप करके सर्वत्र अनिश्चय की स्थति बनाने का प्रयास किया है ।

सनातनी परम्परा में अधाेनिर्दिष्ट प्रमाण से  धर्म में मुख्य रूप में शब्द ही प्रमाण माने जाने से
''शास्त्रस्था वा तन्निमित्तत्वात्'' (जैमिनीय धर्ममीमांसासूत्र१।३।९),
''अशुद्धमिति चेच् छब्दात्'' (ब्रह्ममीमांसासूत्र ३।१।२५),
''शब्दप्रमाणका वयम् यच् छब्द अाह तद् अस्माकं प्रमाणम्'' (पाणिनीयव्याकरणभाष्य, पस्पशाह्निक वार्तिक ९, २।१।१ वार्तिक ५) शब्दप्रमाण अतिमहत्त्वपूर्ण है ।
उसमें दयानन्द से  शब्दप्रमाण में ही अनिश्चय की स्थिति लाने का प्रयास किए जाने से दयानन्द के सत्यार्थप्रकाशादि ग्रन्थ सनातनियाें काे  अमान्य हैं ।

अतः सनातनियाें के लिए सत्यार्थप्रकाश के वेदादि शास्त्र विषय के सब ही कथन सुतराम् सर्वथा अमान्य है ।

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