Saturday, 26 May 2018

कलियुग में गणेश का स्वरुप

युगे युगे भिन्ननामा गणेशो भिन्नवाहनः।
भिन्नकर्मा भिन्नगुणो भिन्नदैत्यापहारकः।।

कलौ तत्स्वरूपं निर्वक्ति..

कलौ तु धूम्रवर्णोऽसावश्वारूढो द्विहस्तवान्।
धूम्रकेतुरिति ख्यातो म्लेच्छानीक-विनाशकः।

अतः भूतिकामैः साम्प्रतं गजाननमूर्तिः परमेश्वर एव अभ्यर्चनीयः।

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