वर्णभेद और व्रात्यादि के लिए - तारो(ॐ)द्विजानां= उपनीतानां
वसुधा (लं)च राज्ञां(व्रात्य)
तथा विशां =व्रात्यवैश्य --श्री(श्रीं)खलु बीजमेव। शूद्रस्य माया(ह्रीं) युवतेरनंग(क्लीं)=कन्याकालव्यतिता
कन्याकाले तु शूद्रवत्(ह्रीं)
पंचप्रकाराः प्रणवाः भवन्ति।।
द्विज उपनयन से संस्कृत द्विजाधिकारी त्रैवर्णिको ही कहा हैं, बिना उपनयन के द्विज नहीं व्रात्य हैं - व्रात्य के क्रम से ह्रीं,लं,श्रीं ही रहेगा , स्त्री का क्लीं और कन्याकाल में ह्रीं।
No comments:
Post a Comment