Sunday, 13 May 2018

स्त्री को उपवास के दिन पालनीय नियम

स्त्री को उपवास के दिन पालनीय नियम --

(१)सूर्योदयात् पूर्व जागरण
(२) अंगूली से दाँतशोधन १६ कुल्ले उत्तरदिशा में -पूर्व में देवता /दक्षिण में पितर /पीछे ऋष्यादिमुनियों होते हैं।
(३)ठंडे जल से तीर्थों का स्मरण करतें हुए -शुद्धमिट्टी से स्नान -साबून शेम्पू वर्ज्य
(४)तैल उबटन न करें
(५) ललाट में कुमकुम / फलक में शुद्ध सिन्दूर/ मंगलसूत्र / चूडी़याँ/ तथा वेणीसदृश केशकलाप
(६)नाखून,बाल,मत काटें, लिपस्टीक आदि मेकअप न करे,
(७)व्रत-उपवास के देवता का पूजन(जैसे प्रायश्चित्त में विष्णु, आदि)कथाश्रवण(प्रायश्चित्ताध्यायका श्रवण) मनन-कथारूपक-आचरण, देवता के नामजप वा सहस्रनामपारायण - और प्रायश्चित्त निमित्त हो तो *न पुनरिष्यति* के वचन अनुसार हुई भूल की ईच्छा फिर से नहीं होगी ऐसा पश्चाताप करतें रहै तो पापसे मुक्त होगे।
(८) प्रायश्चित्त निमित्त पयोव्रत हो तो तीनपल =१२० ×२= २४०ग्राम गोदूध (चाय की प्यालीभर तीन टाईम वा दो टाईम दूध) चाय आदि पदार्थ नहीं, प्यास लगने पर दोतीनघूँट पानी पीयें (ज्यादा जलपान से व्रतनाश)होता हैं

(९) दिवानिद्रात्याग, लंबेपैर फैलाकर मत बैठे, पति से उच्चासीन न हो, जमीन पर कुछ बीछाकर वहाँ व्रत का आचरण करें, शूद्र(पटेल आदि भी शूद्र हैं), चांडाल,मार्जार,कुत्ते के स्पर्श होने पर ठंडे जल से पहनेकपड़े जल में डूबोंकर स्नान।

(१०) देहलीपर खडे़ न रहे और न जमीन को खुदैड़े। पतितों (बिना जनेऊवाले के साथ सम्भाषण न करें- *पतितसम्भाषण* भी दोष कहा हैं।
(११) टी,वी आदि मनोरंजन न करें - मन का रंजन करने का साधन भागवतजी में -- *वाणी गुणानुकथने श्रवणौ कथायां हस्तौ च कर्म सुमनस्तव पादयोर्नः।।*  के वचन से वाणी का प्रयोग भगवत्कीर्तन,नामस्मरण,पति के साथ स्वाध्याय,बच्चों के साथ स्वाध्याय विशेषरूप से जो प्रायश्चित्त कर रहे हैं उनका अभिगम बच्चों को भी बतायें। भगवन्नाम का स्मरण या प्रायश्चित्ताध्याय, हाथ द्वारा पूजा,दान,गौसेवा, नामजप आदि तथा दायें हाथ का नाभि के नीचांगो का स्पर्श न करें, मन को पूर्णरूप से पति के चरणों में सेवा में लगायें या परमेश्वर के चरित्रों का मनन करना यह मन का रंजन हैं।

रात्रि में भूमिपर पथारी बीछाकर सोएँ,

दूसरे दिन भी प्रातःकृत्य उपवासके दिन अनुसार करें - एकभूक्तव्रत दूसरे दिन करना चाहिये।। मध्याह्न के पहले भोजन  न करें और न चाय नाश्ता करें केवल १२०ग्राम दूध पीएँ, रात को भोजन करेंगे तो पूर्ण उपवास हो जायगा और पूरे नियमों का ध्यान रखना पडैगा -इसलिये एकभूक्तव्रत में अपराह्ण काल में ही पति के वैश्वदेव हो जाने के बाद भोजन करें --

चिंतनीय - पतिव्रता = पति के व्रत को धारण करने वाली यदि पति नित्यवैश्वदेव शिष्टान्न भोजन करता हो तो -पत्नी को भी वैश्वदेव के बाद ही भोजन करना चाहिये, पति का व्रत धर्ममार्ग से आजिविका चलाकर अन्नादि से अपना गुजारा करता हो तो पत्नी को भी पति के कमाई हुई पूंजी से ही जो अन्न घर में हो वहीं खाना चाहिये, पराया अन्न पातिव्रत्य का नाशक हैं, पत्नी के लिए भाई, आचार्य,गुरु, पिता और पति तथा पुत्र का अन्न पकाया नहीं होता - परंतु यदि भाई ,गुरु,आचार्य आदि भी नित्यसन्ध्योपासनादि से रहित हैं तो उनका अन्न भी प्रायश्चित्त कर ही हैं, पिता का अन्न कैसा भी हो वह ग्राह्य हैं -परंतु कुछ दान गौसेवा आदि कर भोजन कर सकतें हैं , पत्नी के लिए देवर पुत्र समान हैं परंतु ज्येष्ठ(पतिका बड़ा भाई ससुर समान होने से) उनके आश्रय में नहीं रह सकती वा कहीं नहीं जा सकती -अध्ययन करें कि हमारे पूर्वजों घूँघट निकालते थे ज्येष्ठ और ससुर के सामने, लेखक की माता भी ज्येष्ठ के सामने घूँघट रखती थी। यह परम्परा कुलिन हैं। शंकित न होएँ - शास्त्रसार के बिना हमारा अंगत मंतव्य किसी को भी आजतक नहीं बताया।
*भाई आदि का अन्न पराया नहीं होता--- वें नित्यकर्म प्रवृत्त हो तो।
पातिव्रत्य स्त्री खंडन होने से गेस्वामीकृत रामचरितमानस का पारायण करे, अथवा ब्राह्मण द्वारा - वाल्मिकीरामायण का श्रवणनियम आदि का पालन कर - श्रवण करें

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