सनातन धर्म में अधर्मी दुष्टों के भी हित की भावना है (सर्वे भवन्तु सुखिनः) .......
...........इसीलिये सनातन धर्म कहता है, उनको यथायोग्य दण्डित अवश्य किया जाये ।
क्योंकि सनातन धर्म ये मानता है कि पाप जीव को सुखी नहीं करता , वरन् धर्म ही सुखी करता है ।
सनातन धर्म अधर्मी को धर्मी बनाकर ही छोड़ता है , या प्यार से या फिर मार से ,
हो सके तो इसी जन्म में बने , अन्यथा अपराधी का सीधे अगले जन्म का टिकट काट दिया जाता है , एक उत्तम आशा सहित ।
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सनातन धर्म की भावना है कि अधर्मी स्वयं सुधर जायें , अन्यथा वह तो है ही सुधारने के लिये ।
आत्मवानों का अनुशासन गुरु करता है ।
दुष्टों का अनुशासन राजा करता है ।
गुप्त पापियों का अनुशासन यम करता है ।
सबका अनुशासन ईश्वर करता है ।
(सनातन धर्म = #अनुशासन )
साभार - आद्यशंकराचार्य संदेश
।। जय श्री राम ।।
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