Tuesday, 3 April 2018

आत्मज्ञानी ही सच्चा सुधारक

इस जगत् को समझने के लिए सबसे अनुपम दृष्टान्त हैं - कुत्ते की पूंछ !  सैकड़ों सुधारक आये और गए, पर कुत्ते की पूंछ वही टेढ़ी की टेढ़ी ।

हम लोग यह विस्मृत होकर संसार में दोषदर्शन हेतु क्रोध, दुःख से अभिभूत होते हैं ।

संसार त्रिगुणात्मक होनेके कारण, साथ जन्मे हुए धुएँसे अग्निकी भाँति सर्वथा दोषसे आवृत हैं - " सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः । "

ईश्वर ने निर्दिष्ट परिमाण अदृष्ट को फलीभूत करनेके लिए ही इसकी रचना की हैं । उसे बदलना संभव नहीं !

अतः सुधारना नहीं, जगत का सत्य जानना ही लक्ष्य हैं -  ' आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च । ' आत्मज्ञानी ही प्रकृत सुधारक है , दूसरा कोई नहीं !

साभार - स्मार्त राहुल

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