इस जगत् को समझने के लिए सबसे अनुपम दृष्टान्त हैं - कुत्ते की पूंछ ! सैकड़ों सुधारक आये और गए, पर कुत्ते की पूंछ वही टेढ़ी की टेढ़ी ।
हम लोग यह विस्मृत होकर संसार में दोषदर्शन हेतु क्रोध, दुःख से अभिभूत होते हैं ।
संसार त्रिगुणात्मक होनेके कारण, साथ जन्मे हुए धुएँसे अग्निकी भाँति सर्वथा दोषसे आवृत हैं - " सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः । "
ईश्वर ने निर्दिष्ट परिमाण अदृष्ट को फलीभूत करनेके लिए ही इसकी रचना की हैं । उसे बदलना संभव नहीं !
अतः सुधारना नहीं, जगत का सत्य जानना ही लक्ष्य हैं - ' आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च । ' आत्मज्ञानी ही प्रकृत सुधारक है , दूसरा कोई नहीं !
साभार - स्मार्त राहुल
No comments:
Post a Comment