प्रश्न - अध्यापनादि कार्य में ब्राह्मणमात्र का अधिकार क्यों हैं ?
उत्तर - तैत्तिरीय ब्राह्मण , द्वितीय काण्ड, अष्टम प्रपाठक , अष्टम अनुवाक के अन्तर्गत पुरोडाश का पुरोनुवाक्यरूप में एक ऋक्मन्त्र आम्नात हैं -
" ब्रह्म देवानजनयत् ब्रह्म विश्वमिदं जगत् । ब्रह्मणः क्षत्रं निर्मितम् ब्रह्म ब्राह्मण आत्मना ।। "
इसपर भाष्यकार सायणाचार्य ने लिखा हैं -
// यज्जगत्कारणं ब्रह्म तदेव देवान् इन्द्रादिनजनयत् । तथैव तत्ब्रह्म अन्यदपि विश्वं सर्वमिदं जगदजनयत् । ....... अतएव अध्यापनाद्यविधिक्रियते । //
~ तैत्तिरीय ब्राह्मण , द्वितीय काण्ड, अष्टम प्रपाठक , अष्टम अनुवाक , सायणभाष्य द्रष्टव्य
भावार्थ - जगत्कारण ब्रह्म इन्द्रादि देवों को उत्पन्न करते हैं, उस ब्रह्म से इन्द्रादि देवों की तरह इस परिदृश्यमान जगत् की उत्पत्ति हुई, ब्रह्म से क्षत्रिय जाति का जन्म हुआ एवं ब्रह्म स्वस्वरुप में ही ब्राह्मण बन गए , इसलिए ब्राह्मणदेह में परब्रह्म का विशेष आविर्भाव हैं । इसलिए ब्राह्मण ही अध्यापनादि कर्म में अधिकृत् हैं ।
साभार :- वेदमन्त्रादि प्रतिपादित जन्मद्वारा ब्राह्मणादि वर्णव्यवस्था, महामहोपाध्याय श्रीयोगेन्द्रनाथ तर्कसांख्यवेदान्ततीर्थ
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