तंत्र में भी वर्णाधिकार मंत्रों के विषय में कहा हैं। जिस मंत्र में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यों के अधिकार हैं वहाँ उपवीतीयों के ही शास्त्रमान्य हैं, अतः व्रात्यों; जिन्हों ने यथा काल यथाक्रम से जन्मपूर्व के गर्भाधानादि तीन संस्कार तथा जन्म के बाद के जातकर्म से यथाकाल-यथाक्रम जनेऊ संस्कार नहीं हुए अथवा तो तीन तीन पैढीओं से संस्कारच्युत हैं, उन्हों का अधिकार स्वतः नहीं रहता अपितु शूद्रोपयोगी मंत्रो में ही अधिकार रहैंगा।।
१अघोर ,२ दक्षिणामूर्ति,३ उमा, ४ माहेश्वर, ५ हयग्रीव, ६ वराह, ७ लक्ष्मीनारायण, ८ आदि में प्रणव संयुक्त अक्षरवालें, ९ वह्नि, १० रवि, ११ आदि में प्रणव से संयुक्त गणपति तथा हरिद्रागणेश, १२ सूर्य का अष्टाक्षर, १३ रामषड्क्षर, १४ ध्रुव, १५ ॐकार, १६ वैदिक मंत्र --- इन मंत्रो पर (उपनयन संस्कार से संस्कृत ब्राह्मण,क्षत्रिय तथा वैश्य )का अधिकार हैं |
१ सुदर्शन, २ पाशुपतास्त्र, ३ आग्नेयास्त्र(जातवेदसे००), ४ नृंसिंह-- इन मंत्रो पर (उपनयन संस्कार से संस्कृत ब्राह्मण तथा क्षत्रिय )का अधिकार हैं |
१, छिन्नमस्ता, २ मातंगी ,३ त्रिपुरा, ४ काली, ५ शिव, ६ लघुश्यामा, ७ कालरात्रि, ८ गोपाल, ९ राम, १० उग्रतारा, ११भैरव इन मंत्रो पर चारों वर्ण का अधिकार हैं | इससे अतिरिक्त जो मंत्र नहीं कहैं हुए हैं इस सभी मंत्र पर "केवल ब्राह्मण" का ही अधिकार हैं | स्त्री और शूद्र को (प्रणव =ॐ )पर अधिकार नहीं हैं |
#तारो_द्विजानां_वसुधा_च_राज्ञां
#तथा_विशां_श्री_खलु_बीजमेव
#शूद्रस्य_माया_युवतेरनंग
#पञ्चप्रकाराः_प्रणवाः_भवन्ति ||
(१) तारो द्विजानाम् --- "संस्कारात् द्विज उच्यते" ॐ कार उपनयन संस्कार से संस्कृत द्विजों का "प्रणव" हैं..
(२) वसुधा च राज्ञाम्-- "लं" (उपनयन संस्कार रहित) व्रात्य क्षत्रिय का "प्रणव" हैं..
(३) तथा विशां श्री खलु बीजमेव -- "श्रीं" व्रात्य-वैश्यों का प्रणव हैं ..
(४)शूद्रस्य माया--- "ह्रीं" शूद्रों का प्रणव हैं...
(५) युवतेरनंग--- "क्लीं" (रजस्वला होने के बाद स्त्री कही जाती हैं) अतः स्त्रीयों का प्रणव हैं, तदुपरांत (रजस्वला से पहिले कुमारिकाओं) का "ह्रीं" प्रणव हैं...
(६)पञ्चप्रकारा प्रणवाः भवन्ति-- ऐसे पाँच प्रकार के प्रणवों (१ ॐ २ लं ३ श्रीं ४ ह्रीं और ५ क्लीं ) की व्याख्या हैं...
#मंत्रमहार्णवे अवलोकयन्तु।।
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