जनेऊ का शास्त्रोक्त काल वीत जाने से पुरुष की व्रात्या संज्ञा होती है उसे वेदाधिकार नहीं होता यदि वेदाधिकार चाहे तो निम्न प्रायश्चित्त करें ! 👇
पिता को १२ प्राजापत्य अथवा चान्द्रायण पिता का पुनरुपनयन तथा पुत्र का गौमुख प्रसव -- करने के बाद - तीनप्राजापत्य
कामाचारकामावादकामभक्षण जनित दोषोपनोदनार्थ - तीन
पुनः (जनेऊ की जो उपलब्ध विधा हैं प्रायः सभी ग्रन्थों में हैं वह स्वशाखा की ,,, पुनःसंस्कारविधि की नहीं )जनेऊ के समय पिता को तीन प्राजापत्य
आचार्य को १२००० गायत्रीजप
प्रत्याम्नाय -- १ कृच्छ्र अथवा प्रजापत्य -- १००० गायत्री जप अथवा २०० गायत्रीमंत्र की वीटनामग्नि में तिलों से होम
तद्गुणित प्राजापत्य संख्या
जनेऊ समय इनके मात्र संकल्प करलेना चाहिये -- जनेऊ के बाद - व्रत अथवा प्रत्याम्नाय को आचरें |
प्राजापत्य १२ दिन का, चांद्रायण १ मास का
निर्जल अथवा सजल /// तृषा लगनेपर -- घूंट दो घूँटभर ही जल
अधिकजल मात्रासे व्रतनाश होता हैं -- व्रतराजे
प्राजापत्य व चान्द्रायण अतीव कठिन होने से अत: प्रत्याम्नाय करे उसकी विधि यथा -
संकल्प --- __ संख्याक प्रजापत्यव्रतस्य प्रत्याम्नाय रूपं ____ अमुकसंख्याक गायत्रीजपं यथा काले करिष्ये
अथवा ____ प्रत्याम्नाय रूपं __ ___अमुक संख्याक गायत्रीमंत्रेण विट्नामाग्नौ तिलाज्येन यथाकाले यक्ष्ये
पिता के १२+३ = १५ कृच्छ्र के -- ६०००० गायत्रीजप
अथवा ३००० होम,
बटुका -- ३ के १२००० गायत्रीजप अथवा -- ६०० होम,
जी तो यह यज्ञोपवीत धारण करने के वाद जप होमादि करना होगा ////
जी हाँ -- यहाँ "आरंभ संकल्पं व्रतसत्रयोः || से प्रायश्चित्त आरंभ माना जायेगा
स्वयं ही करें दोनों बटु और पिता --->> क्योंकि उत्तम प्रायश्चित्त शरीरद्वारा कर्म हो
नहीं तो पैसे देकर करवालेगा -- पर उसे पश्चाताप नहीं रहेगा
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