*शुक्ल यजुर्वेदीय माध्य०शा*
#षोडश_संस्काराः(यज्ञोपवीतम्)खंड १२९-#कात्यायन_परिशिष्टसूत्रोक्त_त्रिकाल-सन्ध्या_प्रयोगः
यह त्रिकाल सन्ध्योपासना विधि - का०परि०सूत्रसे हैं,जिस द्विजको सन्ध्यावंदनके लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता वह इस प्रयोगसे अपने नित्यकर्म(तीनों कालकी सन्ध्यावंदन)की पूर्ति कर सकता है, यह त्रिकाल सन्ध्योपासना उपरांत तीनोंकालकी भिन्न-भिन्न विस्तृत सन्ध्योपासना विधि अपने अपने कुलाचार्यों से जानैं..
#अथ_सूत्रोक्त_त्रिकालसन्ध्योपासना_विधिः||
भस्मधारणम्-पहलेसे अभिमंत्रित करकें रखी हुई भस्ममें प्रातःकाल जल मिलाकर,मध्याह्नमें चन्दन तथा जल मिलाकर और सायंकालको निर्जल भस्मको धारण करैं.
(१)ललाटमें-ॐत्र्यायुखन्जमदग्नेः||इति ललाटे||
(२)गलेमें- कश्श्यपस्य त्र्यायुखम्||इति ग्रीवायाम्||
(४)दोनों बाहुपर- जद्देवेखु त्र्यायुखम्||इति बाह्वोः||
(५)हृदयपर-तन्नोऽ अस्तु त्र्यायुखम्||इति हृदये||
आचमन- दायें हाथमें जल लेकर मंत्र पढैं- ॐ आमागन्यशसा स गूँ स्रेज वरेचसा | तं मा कुरु प्रियं प्रजानामधिपतिं पशूनामरिष्टिं तनूनाम् || आचमन करकें, दो बार पुनः मौन होकर बिना मंत्र आचमन करैं.
शिखाबन्धनम्- गायत्रीमन्त्रसे
प्राणायामः- प्रणव,सात व्याहृतियाँ,त्रिपदा गायत्रीमंत्र तथा गायत्रीशिर से तीन प्राणायाम करैं-(यह क्रिया अपने कुलाचार्य या आचार्यसे जान लें)|
न्यासाः-शरीरके अङ्गोका स्पर्श करना_दायें हाथके अग्रभागसे मुखका स्पर्श-ॐ वाङ्गऽआस्येस्तु | तर्जनी और अंगुठेसे नाकका स्पर्श-ॐनर्सोमे प्राणोस्तु | अनामिका और अंगुठेसे दोनों आंखोका स्पर्श-ॐअक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु | मध्यमा और अंगुठेसे दोनों कानका स्पर्श-ॐकर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु | दायें हाथके अग्रभागसे दोनों बाहुका स्पर्श-ॐबाह्वोर्मे बलमस्तु | दोनों हाथसे दोनों घुंटनके उपरी भागका स्पर्श-ॐ ऊर्वोर्मेऽओजोस्तु | शिरसे पैरतक सभी अंगोका दोनों हाथोसे स्पर्श(सारे शरीरपर हाथ फैरना)-ॐ अरिष्टानि मेङ्गानि तनूस्तन्वा मे सह सन्तु | हाथ धुएँ
सङ्कल्पः-ॐतत्सत्परमेश्वर प्रीत्यर्थं ( जिस कालकी संध्या करनी हैं उस काल का उच्चार करैं_"प्रातः/मध्याह्न/सायं)सन्ध्योपासनमहं करिष्ये | अर्घ्यदानम्- दोनों हाथकी अञ्जलीमें जल लेकर प्रत्येक बार गायत्री मंत्र पढकर प्रातःकाल तीन(सूर्योदयके बाद ४),मध्याह्नमें१,सायंकाल में ३(सूर्यास्तके बाद तारे निकलनेसे पहले ४) अर्घ्य दैं |
सूर्योपस्थान-ॐतच्चक्षुर्द्देवहित म्पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् | पश्श्येम शरदः शतञ्जीवेम शरदः शत गूँ शृेणुयाम शरदः शतम्प्रब्ब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतम्भूयश्च शरदः शतात् ||यजुः२४/३६||
गायत्रीमंत्रजपः- १०८ संख्यामें, २८संख्यामें अथवा १०संख्यामें गायत्रीमंत्र जप करमाला से करैं, करमालाका चित्र बताया हुआ हैं| जप पूर्ण करकें जपसमर्पण करैं
जपसमर्पण सङ्कल्प- अनेन यथाशक्तिः गायत्रीजपाख्येन कर्मणा श्री सविता देवता प्रीयताम् ||
सन्ध्योपासना समयसर करनेसे अभ्यास हो जाता हैं और नित्यक्रम बन जायँगा परंतु समयचूक होतें अभ्यास खंडित होनेसे आलस रह जाती हैं... एक बार अभ्यास हो गया तो समजो कि अपने आप ही समयपर सन्ध्योपासना करनें लगेगे..
ॐस्वस्ति||पु ह शास्त्री.उमरेठ||शेष पुनः
हर हर महादेव
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