Sunday, 18 February 2018

संसार का संसरण -

रोटी सामने पड़ी  है । दो भूखे खड़े   हैं ।

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भाग -०१ देखिये -

दोनों  एक दूसरे की  भूख  का विवेक करते हुए  एक- दूसरे को  रोटी समर्पित कर दें,  तो सतयुग ।

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इसके स्थान पर ,  दोनों आधा -आधा कर के खायें तो त्रेतायुग ।

पर दोनों  में  एक अधिक दूसरा कम  खाये तो द्वापरयुग ।

दोनों   झपट्टा मारकर पहले खा लें तो कलियुग  ।

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भाग -०२ देखिये -

अब घटना होने के बाद निर्णय होता है । निर्णायक  रोटी स्वयं  है ।  पेट में आती है और अपना  प्रभाव दिखाती है। 

[अन्न को ब्रह्म जानना ! - शास्त्र ।। ]

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*संसार ईश्वरीय प्रशासन  में गतिमान् है । विद्वान्  ईश्वरीय अनुशासन के अनुकूल होकर चलता है , मूर्ख प्रतिकूल चलकर अपने पॉव पर कुठाराघात करता है ।*

।। हर हर महादेव ।।
।। जय श्री  राम ।।

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