Monday, 26 February 2018

शर्मा नाम रहस्य

साभार- श्री आद्य शंकराचार्य संदेश
        #शर्मा_नाम_रहस्य-

संस्कृत के #शर्म शब्द से  शर्मा शब्द बना है ।  शास्त्र में #शर्मवद्_ब्राह्मणो_ज्ञेयो ( मनुस्मृति) कहा गया है अर्थात् ब्राह्मण को शर्मा नाम से  जानना चाहिये  ।

अतः शर्मा सम्बोधन  ब्राह्मणमात्र का परिचायक होता है , आजकल  के पाश्चात्य प्रभाव से ये  #शर्मा सम्बोधन के व्यक्तिगत होकर रह गया है , जबकि शास्त्रीय दृष्टि से ऐसी नही है ।

शर्मा सम्बोधन ब्राह्मणजातिमात्र का वाचक होता है , जबकि अन्य उपनाम यथा दूबे, तिवारी, जोशी, पन्त, पाठक आदि  उन उन ब्राह्मणों के वैशिष्ट्य की दृष्टि से लोकविख्यात हुए  हैं  किन्तु शर्मा - ये  सम्बोधन ब्राह्मणजातिमात्र का सम्बोधक होता है ।

अतः प्रत्येक  ब्राह्मण को  स्वयं को  आत्मपरिचय में  अमुक शर्मा   हूं - ये कहना चाहिये , ऐसी प्राचीन आचार्यों ने व्यवस्था दी है ।

ये बात और है कि आजकल  शुद्ध,  अनुलोम  ब्राह्मणों से लेकर प्रतिलोम  ब्राह्मणेतर पर्यन्त सभी इस  नाम को अंगीकृत कर लिये हैं , अतः जो कोई भी  'शर्मा जी नमस्ते' ले लेता है,  किन्तु शास्त्रीय दृष्टि से केवल एक उच्च कुलीन विशुद्ध ब्राह्मण में ही यह पद प्रयोग हो  सकता है ।

शास्त्रीय रीति के अनुसार शर्म, वर्म, गुप्त तथा  दास ( शर्मा , वर्मा, गुप्ता, दास) - इन चार सम्बोधक  पदों से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र  जाति का वाचन होता है ।

।। जय श्री राम ।।

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