साभार- श्री आद्य शंकराचार्य संदेश
#शर्मा_नाम_रहस्य-
संस्कृत के #शर्म शब्द से शर्मा शब्द बना है । शास्त्र में #शर्मवद्_ब्राह्मणो_ज्ञेयो ( मनुस्मृति) कहा गया है अर्थात् ब्राह्मण को शर्मा नाम से जानना चाहिये ।
अतः शर्मा सम्बोधन ब्राह्मणमात्र का परिचायक होता है , आजकल के पाश्चात्य प्रभाव से ये #शर्मा सम्बोधन के व्यक्तिगत होकर रह गया है , जबकि शास्त्रीय दृष्टि से ऐसी नही है ।
शर्मा सम्बोधन ब्राह्मणजातिमात्र का वाचक होता है , जबकि अन्य उपनाम यथा दूबे, तिवारी, जोशी, पन्त, पाठक आदि उन उन ब्राह्मणों के वैशिष्ट्य की दृष्टि से लोकविख्यात हुए हैं किन्तु शर्मा - ये सम्बोधन ब्राह्मणजातिमात्र का सम्बोधक होता है ।
अतः प्रत्येक ब्राह्मण को स्वयं को आत्मपरिचय में अमुक शर्मा हूं - ये कहना चाहिये , ऐसी प्राचीन आचार्यों ने व्यवस्था दी है ।
ये बात और है कि आजकल शुद्ध, अनुलोम ब्राह्मणों से लेकर प्रतिलोम ब्राह्मणेतर पर्यन्त सभी इस नाम को अंगीकृत कर लिये हैं , अतः जो कोई भी 'शर्मा जी नमस्ते' ले लेता है, किन्तु शास्त्रीय दृष्टि से केवल एक उच्च कुलीन विशुद्ध ब्राह्मण में ही यह पद प्रयोग हो सकता है ।
शास्त्रीय रीति के अनुसार शर्म, वर्म, गुप्त तथा दास ( शर्मा , वर्मा, गुप्ता, दास) - इन चार सम्बोधक पदों से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जाति का वाचन होता है ।
।। जय श्री राम ।।
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