Sunday, 11 February 2018

महाशिवरात्रिव्रत निर्णय के प्रमाण वचन

महाशिवरात्रि व्रत में निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी ग्राह्य है।
इस वर्ष तिथि त्रयोदशी तथा चतुर्दशी दोनो दिन निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी प्राप्त होने से दिनद्वय महाशिवरात्रि व्रत का योग है।
किन्तु ऐसी स्थिति में स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, स्मृतिग्रन्थ आदि के वचनों के अनुसार जया (त्रयोदशी) युक्त तथा भद्रा युक्त निशीथ  व्यापिनी चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि व्रत करना चाहिए ।
त्रयोदशी यदा देवी दिनयुक्ति प्रमाणतः।।
जागरे शिवरात्रि:स्मानिशि पूर्णा चतुर्दशी।।
जयन्ती शिवरात्रिश्च कार्ये भद्राजयान्विते ।।
(स्कन्दपुराण)
भवेद्यत्र त्र्योदश्यां भूतव्याप्ता महानिशा।।
शिवरात्रि व्रतं तत्र कुर्याजागरणमं तथा।।
(स्मृति)

सनातन धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व प्रतिपादित है। भगवान शिव की आराधना का यह विशेष पर्व माना जाता है। पौराणिक तथ्यानुसार आज ही के दिन भगवान शिव की लिंग रूप में उत्पत्ति हुई थी। प्रमाणान्तर से इसी दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ है। अतः सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा यह व्रत एवं उत्सव दोनों रूप में अति हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे तो सम्पूर्ण भारतवर्ष में इसकी महिमा प्रथित है परन्तु भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिगों के क्षेत्र में तथा उनमें भी तीनों लोकों से अलग शिवलोक के रूप में प्रतिष्ठित काशी एवं यहाँ पर विराजमान भगवान विश्वेश्वर के सान्निध्य में तो भक्ति एवं उत्सव का समवेत स्वरूप देखते ही बनता है
फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि होती है। परन्तु इसके निर्णय के प्रसंग में कुछ आचार्य प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तो कुछ निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी में महाशिवरात्रि मानते है। परन्तु अधिक वचन निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के पक्ष में ही प्राप्त होते है। कुछ आचार्यों जिन्होंने प्रदोष काल व्यापिनी को स्वीकार किया है वहाँ उन्होंने प्रदोष का अर्थ  #अत्र_प्रदोषो_रात्रिः कहते हुए रात्रिकाल किया है। ईशान संहिता में स्पष्ट वर्णित है कि - #फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्याम्_आदि_देवो_महानिशि।
#शिवलिंगतयोद्भूतः_कोटिसूर्यसमप्रभः।।
#तत्कालव्यापिनी_ग्राह्या_शिवरात्रिव्रते_तिथिः।।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की मध्यरात्रि में आदिदेव भगवान शिव लिंग रूप में अमितप्रभा के साथ उद्भूूूत हुए अतः अर्धरात्रि से युक्त चतुर्दशी ही शिवरात्रि व्रत में ग्राह्य है।
धर्मशास्त्रीय उक्त वचनों के अनुसार इस वर्ष दिनांक 13/02/2018 ई. को चतुर्दशी का आरम्भ रात्रि 10:22 बजे हो रहा है तथा इसकी समाप्ति अग्रिम दिन दिनांक 14/02/2017 ई. को रात्रि 12: 17 मिनट पर हो रही है। अतः *"एकैक व्याप्तौ तु निशीथ निर्णयः’’*इस धर्मशास्त्रीय वचन के अनुसार चतुर्दशी 13 फरवरी को निशीथ काल एवं 14 फरवरी को प्रदोष काल में प्राप्त हो रही है ऐसे स्थिति में निशीथ के द्वारा ही इस वर्ष शिवरात्रि का निर्णय किया जाएगा। निशीथ का अर्थ सामान्यतया लोग अर्धरात्रि कहते हुए 12 बजे रात्रि से लेते है परन्तु निशीथ काल निर्णय हेतु भी दो वचन मिलते है माधव ने कहा है कि रात्रिकालिक चार प्रहरों में द्वितीय प्रहर की अन्त्य घटी एवं तृतीय प्रहर के आदि की एक घटी को मिलाकर दो घटी निशीथ काल होते है। मतान्तर से रात्रि कालिक पन्द्रह मुहूर्त्तों में आठवां मुहूर्त निशीथ काल होता है।  अतः इस वर्ष 13 फरवरी को निशीथकाल 11: 34:30 से 12: 26: 00 तक तथा 14 फरवरी 11:35:38 से 12:27:02  तक तथा प्रमाणान्तर दोनों दिवसों में रात्रि 11 बजे से 01 बजे तक हो रहा है। अतः *‘‘ पूरे द्युः प्रागुक्तार्धरात्रस्यैकदेशव्याप्तौ पूर्वेद्युः ’’* वचन के अनुसार 14 फरवरी को (रात्रि 11:35:38 से 12: 27: 02 बजे तक) पूर्ण निशीथ काल के पूर्व 12:17 मिनट पर चतुर्दशी समाप्त हो जाने से पूर्ण निशीथ व्यापिनी नहीं मानी जा सकती। अतएव स्पष्ट रूप से धर्मशास्त्रीय वचनानुसार दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि व्रतोत्सव मनाया जाएगा।

चतुर्दशी की पृथक-पृथक स्थितियों  में इस व्रत का निर्णय धर्मशास्त्रों ने इस प्रकार किया है।

१👉 यदि चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो तो व्रत पहले ही दिन।

२👉 यदि चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथव्यापिनी हो तो व्रत दूसरे दिन।

३👉 यदि चतुर्दशी दोनो ही दिन निशीथव्यापिनी नाहो तो व्रत दूसरे दिन।

४👉 यदि चतुर्दशी दोनो ही दिन निशीथ को पूरी तरह या आंशिक रूप से व्याप्त करे तो भी व्रत दूसरे दिन।

५👉 यदि चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथ के एकदेश को और पहले दिन सम्पूर्ण भाग को व्याप्त करे तो व्रत पहले दिन।

६👉 यदि चतुर्दशी पहले दिन निशीथ के एकदेश को और दूसरे दिन सम्पूर्ण भाग को व्याप्त करे तो व्रत दूसरे दिन।

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