स्वधर्म्मानुष्ठाननिरत व वेदशास्त्रवित् विप्रों की भी आयु क्षय जिन दोषों से होती है उनमें से *अन्नदोष* भी एक मुख्य दोष है। जैसे कहा :-
*लशुनं गृञ्जनञ्चैव पलाण्डुं कवकानि च।*
*अभक्ष्याणि द्विजातीनाममेध्यप्रभवानि च।।*
___ मनु ५/५
अन्नदोषस्यायु: क्षयहेतुत्वभिधायादावभक्ष्यान्येव निर्द्दिशति लशुनमिति, लशुनादय: प्रसिद्वाकवकंछत्राकं अमेध्याद्विष्ठादेर्जातानि वराकादीनि द्विजातीनामभक्ष्याणि जानीयादिति योजनीयं। द्विजातिशब्द: शूद्रस्यादोषं ज्ञापयति।। इति
अर्थात् लशुनं(लहसुन), गृञ्जनं(गाजर,शलजम,विषैले तीर से मारे हुए पशु का मांस), पलाण्डुं(प्याज), कवकं(कुकुरमुत्ता), आदि..... ये सब द्विजों (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य) को न खाने योग्य है क्योंकि इनकी उत्पत्ति विष्ठा से हुई है (अमेध्य माने जो यज्ञ के योग्य न हो)।
ध्यातव्य है कि शास्त्रविधि हीन से जो भोजन करतें हैं वे स्वपाप को ही खातें हैं। *यज्ञशिष्टाशिन: सन्तो..* आदि स्मृति वचन एतदर्थ अवलोकनीय है। अत: लशुनादि अमेध्य पदार्थ अभक्ष्य बताये द्विजों के लिए।
*द्विजातीनां* इस पद से लशुनादि भक्षण में शूद्रादियों को अदोष ज्ञात होता है।
हर हर महादेव !!!
No comments:
Post a Comment