Monday, 8 January 2018

पंचदेव पूजा प्रकरण


शास्त्रोमें पंचदेवों की उपासना करने का विधान हैं।
आदित्यं गणनाथं च देवीं रूद्रं च केशवम्।
पंचदैवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्।। (शब्दकल्पद्रुम)
भावार्थ: – पंचदेवों कि उपासना का ब्रह्मांड के पंचभूतों के साथ संबंध है। पंचभूत पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश से बनते हैं। और पंचभूत के आधिपत्य के कारण से आदित्य, गणनाथ(गणेश), देवी, रूद्र और केशव ये पंचदेव भी पूजनीय हैं। हर एक तत्त्व का हर एक देवता स्वामी हैं-
आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः।।
भावार्थ:- क्रम इस प्रकार हैं महाभूत अधिपति
1. क्षिति (पृथ्वी) शिव
2. अप् (जल) गणेश
3. तेज (अग्नि) शक्ति (महेश्वरी)
4. मरूत् (वायु) सूर्य (अग्नि)
5. व्योम (आकाश) विष्णु
भगवान् श्रीशिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शिवलिंग केरुप में पार्थिव-पूजा का विधान हैं। भगवान् विष्णु के आकाश तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शब्दों द्वारा स्तुति करने का विधान हैं। भगवती देवी के अग्नि तत्त्व का अधिपति होने के कारण उनका अग्निकुण्ड में हवनादि के द्वारा पूजा करने का विधान हैं। श्रीगणेश के जलतत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा करने का विधान हैं, क्योंकि ब्रह्मांद में सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाले जीव तत्त्व ‘जल’ का अधिपति होने के कारण गणेशजी ही प्रथम पूज्य के अधिकारी होते हैं।

No comments:

Post a Comment

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...