प्रश्न :- क्या शूद्र आरम्भ से अछूत दे श्रीमन्?
उत्तर : - अछूत शब्द सापेक्ष है , वो हरेक वर्ण होता है । जैसे शूद्र ब्राह्मण के लिये अछूत कहा गया वैसे ही ब्राह्मण भी शूद्र के लिये अछूत ही था | इसके पीछे गहन सृष्टि विज्ञान है |
आप देखिये , सृष्ट्योत्पत्ति , सृष्टि प्रक्रिया और सृष्टिनाश का विज्ञान आज तक आधुनिक विज्ञान के पास नहीं है , अभी हिंग्सबोसान की खोज की गयी थी , प्रयास आज तक चल रहा है पर सफल नहीं हैं कोई | अब मैं एक क्षण में सारा सांख्य वेदान्त तो पढा नहीं सकता , और बिना पूरा समझे शंका बनी रहेगी, बस सारसंकेत ही कर सकता हूं | स्पर्श के विधान सृष्टि के त्रिगुणों के विज्ञान से जुड़े हैं , वर्ण व्यवस्था भी वस्तुतः यही सांख्योक्त गुणविभागमूलक है | गुणों से कैसे सृष्टि होती है , गुण क्या हैं , इत्यादि के लिये आपको योग्य गुरुजनों से सांख्यदर्शन पढना चाहिये ।
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः - यहॉ पर गुणविभागशः शब्द कहा है ।
रजोगुणान्तर्गत सत्त्वगुण प्रधान वर्ण ब्राह्मण कहलाता है , रजोप्रधान क्षत्रिय इस प्रकार व्यवस्था है |
गुणों में परिवर्तन नैसर्गिक है अतः वर्ण परिवर्तन भी सम्भव है किन्तु परिवर्तन प्रक्रिया मनमुखी न होकर नैसर्गिक ही होती है , क्योंकि आधारभूत गुण स्वयं नैसर्गिक हैं |
वर्णपरिवर्तन पर जिस तरह की व्याख्या आजकल की जाती है वह अनुचित है । वर्ण व्यवस्था नैसर्गिक गुणों पर आश्रित होने से वर्ण परिवर्तन नैसर्गिक प्रक्रिया से ही सम्भव होता है , उस नैसर्गिक प्रक्रिया का वर्णन मनु स्मृति दशम अध्याय में वर्णित है ।
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