जो वृद्ध शूद्र होते हैं , उन को सभी बहुत विद्वम्मन्य भाव से व्यवहार करते हैं । परम्पराओं में नवयुवकों में कहीं कोई विप्रतिपत्ति आये तो , वे लोग उनसे निस्संकोच धर्म पूछते हैं |
स्वयं मनु ने भी कहा है नब्बे वर्ष की आयु से उपर शूद्रजन धर्म में प्रष्टव्य होते हैं |
शूद्रों को प्याज आदि खाने का दोष नहीं लगता , उनको तरह तरह के कठिन नियमों का बन्धन नहीं होता , ना ही संन्यास लेने की अनिवार्यता होती है , ना कहीं युद्ध की चिन्ता , बस नाचते गाते सेवा सहयोग करके अपने घर परिवार का आनन्द लेकर वे भवपार होने के योग्य बन जाते हैं , हमारे सनातन धर्म जैसा कहॉ मिलेगा धर्म ?
ब्राह्मण को तो छः अंगों सहित दुरूह वेदों कोयाद करना पडता है , पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य , फिर गृहस्थ के कठोर नियम, न करने पर पाप , पाप बो जाये ते राजासे सब वर्णों से अधिक दण्ड विधान, फिर आधे जीवन में ही जाओ सब छोड़कर जंगल , फिर बनो संन्यासी , किसके साथ है कठोर ता ? विचार कीजिये ।
जो शूद्र कहते हैं हम पर अत्याचार हो रहा है , वे लोग ब्राह्मण क्यों नहीं बन जाते ? आजकल तो लोकतंत्र है , अपने घर में करो गूगल से डाउनलोड करके छः अंग सहित वेदों को याद , कौन रोक रहा है आपके घर आकर ?
गरीब तो ब्राह्मण होते थे , भिक्षा मॉगकर खाना था , संचय का निषेध था , शूद्रों को तो तीनों वर्ण देते थे , पर ब्राह्मण के तो मॉगने की भी मर्यादा थी |
ब्राह्मण उतना ही मॉग सकता है जितने से निर्वाहमात्र हो जाये ,वो खाने के लिये पचास नियम , खाने के बाद जप से शुद्धि ।
ब्राह्मण उतना ही मॉग सकता है जितने से निर्वाहमात्र हो जाये ,वो खाने के लिये पचास नियम , खाने के बाद जप से शुद्धि ।
फटी पुरानी कुटी में रहते थे गोबर के उपले से युक्त |
श्री आद्य शंकराचार्य के जीवन में आता है ब्राह्मणी के घर भिक्षा मॉगने गये , बेचारी के पास ऑवले के अतिरिक्त कुछ था ही नहीं !
और ब्राह्मणों की सामाजिक स्थिति देखिये - द्रोणाचार्य द्रुपद से अपमानित , चाणक्य नन्दवंशियों से अपमानित , कोई बन में रह रहा है , कोई कुटी में , कइयों को तो दिनभर में भिक्षा भी नहीं मिले ठीक से , मिले तो प्रहार के रूप में घर लीपने वाला कपड़ा ,
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