प्रश्न: - प्रभुजी एक बात समझ न आयी
गर ब्राह्मण पुरुष और शूद्र स्त्री से उत्पन्न पुत्र चाण्डाल होता तो
महर्षि वेद व्यास का जन्मकथा भी तो एसी ही है वो भी बिना वैदिक विवाह के |
एक और प्रश्न न समझ आया प्रभु
गर ब्राह्मण शूद्रादि एक दुसरे के लिए अछूत थे तो चित्रकूट पर जब भरत जी भगवान राम से मिलने आये थे तो उनके साथ ऋषि वशिष्ठ भी थे और भगवान् राम् के साथ निषाद राज भी |
उत्तर :- एक हजार लोगों के उदाहरण में से नौ से निन्यानवे के अनुसार धर्म न समझना वरन् एक के अनुसार समझना - इसे क्या कहना चाहिये ? कौनक्या था क्यानहीं वो सब तो बाद की बातें हैं , पहले अपना तर्क तो शुद्ध हो |इतिहास और विधि - दोनों में से धर्म में कौन प्रमाण है ?
इतिहास तो राम का भी है रावण का भी , किन्तु आचरण की बात आयेगी तो राम का ही प्रमाण लिया जायेगा नकि रावण का ;है कि नहीं !
प्रश्न :- जी गुरु जी सहमत् किन्तु साधना की बात आएगी तो रावण भी गिने जाते है |
उत्तर :- साधना में भी शास्त्रविधान ही पहले देखा जायेगा , अन्यथा साधक तो महिषासुर भी है । साधना में भी साधक नहीं वरन् साधनाबोधक शास्त्र ही प्रमाण है ।
(रज) +( सत्व + रज + तम ) = ब्राह्मण शरीर
(रज ) + (रज + सत्व + तम)= क्षत्रिय शरीर
वैश्य = ( रज )+ (रज + तम + सत्त्व )
शूद्र = (रज) + (तम + रज + सत्त्व )
व्यक्ति के अधीन गुण नहीं होते , वरन् व्यक्ति गुणों के अधीन होता है | आपके अधीन शरीर नहीं है , वरन् आप हो शरीर के अधीन |
वर्ण गुण से बना है , गुणों प्राकृतिक तत्व हैं , इन पर मनुष्य का नहीं वरन् ईश्वर का नियन्त्रण है । गुण का मतलब यहॉ आदत (हैबिट ) नहीं है वरन् जैसे आधुनिक विज्ञान में सभी पदार्थ न्यूट्रॉन प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन से बने हैं , कुछ ऐसे ही |
प्रश्न:- एक शब्द के अनेक अर्थ है जैसे वर्ण के नाद, श्वेतादि वर्ण तो कैसे पता करें कौन कहां प्रयुक्त है ?
उत्तर :- आपका नाम अम्बुज है , अम्बुज माने कमल होता है , पर आप भी हो कि नहीं अम्बुज ? ठीक इसी प्रकार एक शब्द के अनेक अर्थ हैं ऐसे ही |
प्रश्न:- सूक्ष्म स्तर पर सभी तत्त्वत: पॉच महाभूत हा है |
उत्तर :- माता, पत्नी और भोजन तीनों तत्त्वतः पॉच महाभूत ही है , पर व्यावहारिक भेद है कि नहीं ! खून और जूस दोनों में है तो H2O ही , पर जूस पीकर ही खून बढाते हैं खून नही पीते , इसलिये सूक्ष्मतः ऐक्यता होने पर भी विधि और व्यवहार में भेद होता है |
No comments:
Post a Comment