बौद्ध का अभिप्राय है " बुद्धमत का अनुयायी " ।
श्री आद्य शंकराचार्य प्रच्छन्न बौद्ध ( परवर्ती प्रचलित बुद्धमत के अनुयायी ) न थे वरन् बुद्ध ही प्रच्छन्न अद्वैती ( प्राचीन सनातन अद्वैतमत के अनुयायी) थे ।
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अतः श्री भगवान् बुद्ध का अनुयायी तो पूरा सनातन धर्म है । श्री भगवान् बुद्ध ने कभी कोई पाखण्ड नहीं फैलाया ।
(अतः यहॉ ध्यातव्य है कि श्रीपद्मपुराणोक्त प्रच्छन्नबौद्धमत व सनातनधर्म के यथार्थबौद्धमत में पर्याप्त अन्तर है । )
जैसे #छद्म_बौद्धों द्वारा भगवान् श्री बुद्ध को बदनाम करने का असफल प्रयत्न किया गया , ऐसे ही #छद्म_वेदान्तियों द्वारा भगवान् श्री आद्य शंकराचार्य को ।
श्री आद्य शंकराचार्य ने ऐसे ही छद्म बौद्धों के कुमत का खण्डन कर उस यथार्थ बुद्ध मत को स्थापित किया , जो स्वयं सृष्टि के आदि में आदि बुद्धस्वरूप श्री भगवान् नारायण से चला था । [नारायणः पद्मभवं वशिष्ठं..]
श्रीमद्भागवतम् में भगवान् बुद्ध को पाखण्ड सेे रक्षा करने वाला बताया गया है ।
#बुद्धस्तु_पाखण्डगणात्_प्रमादात् [श्रीमद्भागवतम् ६।८।१९]
जैसे श्री भगवान् बुद्ध पाखण्डियों से सनातनियों की रक्षा करते हैं , वैसे ही श्री भगवान् आद्य शंकराचार्य भी पाखण्डियों से (छद्म बौद्धों से शास्त्रार्थादि द्वारा ) सनातनियों की रक्षा करते हैं ।
भगवान् बुद्ध और भगवान् शंकर दोनों सनातन धर्म के संरक्षक हैं । #हरि_हर_एक्य इसीलिये तो कहा गया है ।
जो हरि हैं , वही हर हैं , जो हर हैं , वही हरि ।।
।। जय हरिहर ।।
।। जय श्री राम ।।
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