साभार:- श्री आद्य शंकराचार्य-संदेश
#छद्म_हिन्दू_विचारकों #का #भ्रमोच्छेदन -
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#आक्षेप- पुराण पुराने जमाने के अनुसार लिखीं बातें थीं ये नया जमाना है ।
#उत्तर - तुम लोग वो धूर्त हो जिसे बिना गॉठ के ही पंसारी बनना है । पुराणों का तुमने कभी गुरुमुख से अध्ययन नहीं किया , द्वितीयक स्रोतों ( Secondary sources ) से तुम पुराणों की जानकारी रखते हो , और वो भी उन मूर्ख लेखकों के लिखे हुए , जो तुमसे इस विषय में चार चरण आगे थे ।
प्रथम बात तो ये है कि पुराण किसी व्यक्ति विशेष की मनोकल्पित रचना नहीं वरन् पुराण ईश्वर से प्रकट दिव्य ज्ञान का एक विशेष संकलन है , जिसका कलियुग आने से पूर्व मात्र सम्पादन होता है ।
दूसरी बात ये है कि पुराण शब्द का अभिप्राय ही होता है कि जो पुराना हो कर भी नया हो (पुरा नवं भवति) । अतः नये जमाने पुराने जमाने के व्यर्थ तर्कों का कोई औचित्य ही यहॉ नहीं है । पुराण वो संविधान है , जो पहले भी पुराना और नया था , आज भी पुराना और नया है तथा आगे भी पुराना और नया ही रहेगा ।
जो वस्तु पुरानी हो वो नयी कैसे हो सकती है ? जो नयी हो वो पुरानी कैसे ? तो इसका यह समाधान है कि अनादि होने से पुराना और शाश्वत (त्रिकालाबाधित) होने से सदैव नया ही है ।
पुराण इस प्रकृति के अनादि शाश्वत विज्ञान हैं , प्रकृति से ही मानव भी बना है , मानव की सोच भी बनी है और मानव बौद्धिक व्यवहार भी करता है । ये जो तुम यहॉ बन्दरकूद मचा रहे हो , तुम्हारी कुण्डली भी पुराण में प्रतिपादित है ।
इसलिये पुराणों के अनुसार ही हिन्दू धर्म की दशा और दिशा पर मार्गदर्शन होना चाहिये । पुराणों के विपरीत विचारधाराओं का समूल उन्मूलन करके ही हिन्दू धर्म संरक्षित होगा ।
।। जय श्री राम ।।
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