Tuesday, 16 January 2018

पुराण को पुराना कहने वालों का भ्रम निवारण

साभार:- श्री आद्य शंकराचार्य-संदेश

#छद्म_हिन्दू_विचारकों #का #भ्रमोच्छेदन -
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#आक्षेप- पुराण पुराने जमाने के अनुसार लिखीं बातें थीं ये नया जमाना है ।

#उत्तर - तुम लोग वो धूर्त हो जिसे बिना गॉठ के ही पंसारी बनना है ।  पुराणों का तुमने कभी गुरुमुख से अध्ययन नहीं किया , द्वितीयक स्रोतों ( Secondary  sources ) से तुम  पुराणों की जानकारी रखते हो , और वो भी  उन मूर्ख  लेखकों के लिखे हुए , जो  तुमसे  इस विषय में चार चरण आगे थे ।

प्रथम बात तो ये है कि  पुराण किसी व्यक्ति विशेष  की मनोकल्पित  रचना नहीं वरन् पुराण  ईश्वर से प्रकट दिव्य  ज्ञान का  एक विशेष  संकलन है , जिसका कलियुग आने से पूर्व मात्र सम्पादन होता है ।

दूसरी बात ये है कि पुराण शब्द का अभिप्राय ही होता है कि जो पुराना हो कर  भी नया हो (पुरा नवं भवति) ।  अतः नये जमाने पुराने जमाने के  व्यर्थ तर्कों का  कोई औचित्य ही यहॉ नहीं है ।  पुराण वो संविधान है , जो पहले भी पुराना  और नया था , आज भी पुराना और नया है तथा आगे भी पुराना और नया ही रहेगा  ।

जो वस्तु पुरानी हो वो नयी कैसे हो सकती है ? जो नयी हो वो पुरानी कैसे ?  तो इसका यह समाधान है कि  अनादि होने से पुराना और शाश्वत (त्रिकालाबाधित) होने से सदैव  नया ही  है ।

पुराण इस प्रकृति के अनादि शाश्वत विज्ञान हैं ,  प्रकृति से ही मानव भी बना है , मानव की सोच भी बनी है  और मानव बौद्धिक  व्यवहार भी करता है । ये जो तुम यहॉ बन्दरकूद मचा रहे हो , तुम्हारी कुण्डली भी पुराण में प्रतिपादित है ।

इसलिये पुराणों के अनुसार ही  हिन्दू धर्म की दशा और दिशा पर मार्गदर्शन होना चाहिये । पुराणों के विपरीत विचारधाराओं का समूल उन्मूलन करके ही हिन्दू धर्म संरक्षित होगा ।

।। जय श्री राम  ।।

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