कुरान कहती है तुम्हारी बीवियॉ तुम्हारी खेती हैं , जब जैसे चाहो अपने खेत में जाओ, जो चाहे अपने खेत के साथ करो, वो तुम्हारा हक है !
शास्त्र कहते हैं तुम्हारी पत्नी अवश्य तुम्हारी भूमि है , उसमें सही समय पर सही उद्देश्य से जाओ , सदैव अपनी भूमि का संरक्षण करो , भूमि को कभी दुरुपयोग मत करना , अन्यथा वह तुम्हारी ही हानि होगी ।
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मनमर्जी करना - ये पशुता है , मनोरोग है । शास्त्र मानव की प्रवृत्ति निवृत्ति का नियामक है, एक अनुशासन है , एक समुचित व्यवस्था है ।
शास्त्र का ही विकृतिकरण कुरान है ।
धर्म का ही विकृतिकरण होता है विधर्म ।
आस्था के नाम पर मानवीय वासना से निर्गत ग्रन्थ अज्ञानियों को धर्म जैसा ही लगता है, पर वह धर्म के नाम पर केवल एक छल होता है ।
वासना तो पामर पशुओं का स्वभाव है , परमेश्वर में वासना की गन्ध भी नहीं है । ईश्वरीय उपदेश में वासना की प्रधानता नहीं होती वरन् शुद्ध उपासना (तप) की प्रधानता होती है । वासनामय ग्रन्थ एक वासनापूरित व्यक्ति की ही कल्पित रचनामात्र होती है ।
।। जय श्री राम ।।
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