एक शुद्ध ब्राह्मण जन्मजात गुरु क्यों कहलाता है ?
#भ्रान्ति - शरीर से कोई ज्ञानी अज्ञानी नहीं होता क्योंकि शरीर तो सबके रक्त, अस्थि, मेद , मज्जादि वाले ही हैं , अतः ब्राह्मण जाति का होने मात्र से कोई गुरु नहीं ।
#उच्छेद- शरीर प्राणी के पूर्वकृत् गुण, कर्म और स्वभाव की ही अभिव्यक्ति होता है । यद्यपि शरीर अज्ञान की विक्षेप शक्ति का कार्य होने से अज्ञानरूप ही है तथापि इस मूलाज्ञान के अन्तर्गत सत्त्वादि की प्रधानता - अप्रधानता से इन गुणों के कार्यों में ज्ञान और अज्ञान का व्यावहारिक विभाग बन सकता है।
इस दृष्टि से सत्त्व गुण ज्ञान का कारक होने से सत्त्वगुण की प्रधानता वाला शरीर ज्ञानप्रधान ही कहा जायेगा और तमोगुण की प्रधानता पर अज्ञानप्रधान वाला।
उस ज्ञानप्रधान उपाधि से युक्त जीव ज्ञानी ही कहलायेगा । मानव योनि रजोगुणप्रधाना है तथा गुणवैषम्यविमर्दन के सिद्धान्त से इस रजोगुण के अन्तर्गत ब्राह्मण शरीर सत्त्वगुण का कार्य होता है । यही कारण है कि जो जन्म से शुद्ध ब्राह्मण है, उसको केवल जाति के आधार पर ही स्वतः #गुरु कहा जाता है ।
एक शुद्ध वर्ण ब्राह्मण जन्म से ही "गुरुदेव" होता है , धर्म की शाश्वत मूर्ति होता है , अग्निस्वरूप होता है । ब्राह्मण के जन्मजात गुरुत्व को नकारना ऐसे ही है , जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि के दाहकत्व को नकारना । शुभमस्तु ।
।। जय श्री राम ।।
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