Friday, 17 November 2017

अज्ञेय संसार

ये संसार देव की महिमा है ,  इसे कथित  विज्ञान (साइंस) से नहीं समझा जा सकता !  इसलिये  विज्ञान ( साइंस ) का आसरा छोड़ दो !

तुम्हारी मति में भी इतनी सामर्थ्य नहीं है कि इस जगत् को समझ सको ! क्योंकि ये स्वयं उसी  महिमा से बनी है,  इसलिये अपनी मति का अभिमान भी त्याग दो !

वेद, वेदान्त,  पुराण , उपन्यास ,  लेख, पत्रिका , समाचारपत्र आदि किसी भी विधा की  किसी  पुस्तकादि   में भी स्वयं में  ऐसी सामर्थ्य  नहीं जो तुमको इस संसार का सत्य  अनुभव करा दे ! 

जादू तोडने के लिये जादू ही चाहिये होता है !  

जब जादूगर  के रूप में सामने  स्वयं परमेश्वर है , तो उसके जादू को तोड़ने की सामर्थ्य उसके अतिरिक्त और किसमें होगी ?  वह स्वयं ही जिसे चाहेगा , उसे मायामुक्त करेगा !

अब इस शाश्वत सत्य सिद्धान्त का व्यावहारिक स्वरूप तुमको सुनाते हैं , यह  रहस्य ध्यानपूर्वक सुनो !

वह यह अगम्य परमात्मा परम करुणामय स्वभाव वाले होने से   स्वयं  सद्गुरु रूप में   अवतरित होकर इस धरा को धन्य करते  हैं !  परन्तु अनमोल और   लीलास्वभाव होने से  वे सहज ही तुम्हें प्राप्त नहीं होंगे  , ना ही तब त़क तुम्हें प्राप्त होंगे , जब तक तुम पर प्रसन्न न हो जायें !

इस आवागमन के चक्रव्यूह से मोक्ष के इच्छुक ब्राह्मणों !

जाओ !   शास्त्र  के पारगामी ,  शुद्ध ब्राह्मण,   परम्परावतार,   ऐसे ही   दिव्य  सद्गुरु को खोजो, जो  नर देह  रूप से भासित होते हुए भी  स्वयं एक परम गोपनीय  अलौकिक अगम्य  विभूति  हो  !   वही तुमको  बचा सकते हैं  !    तभी तुम्हारा यह विप्र  शरीर धारण करना सफल है , #प्रैति_स_ब्राह्मणः इस श्रुति ने यही रहस्य कहा है !

#संन्यास 🌼

।।  जय श्री राम ।।

No comments:

Post a Comment

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...